हम सभी जानते है कि अवसाद एक मानसिक बीमारी है| अवसाद के रोगी न सिर्फ पश्चिम देशो में अपितु भारत में भी बहुत तेजी के साथ बढ़ रहे है, विश्व स्वास्थ्य स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अवसाद के २०२० में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी के रूप में उभर कर सामने आने की सम्भावना है| मानसिक रोग शारीरिक रोगों की ही तरह ठीक हो सकने वाली समस्या है| कई बार अनजाने में या फिर बिमारी के प्रति पूर्ण जानकारी न होने के कारण समस्या गंभीर रुप ले लेती है अगर अवसाद की समस्या पर सही ढंग से विचार किया जाये तो आप और हम मिलकर अवसाद की समस्या को कम करने में अपनी अपनी भूमिका निभा सकते है हम सभी जानते है कि भारत युवाओ का देश है, और इस देश ने सारे विश्व को ज्ञान प्रदान किया है परन्तु सिर्फ जागरूकता की कमि के कारण हमारे देश का बहुत बड़ा वर्ग अवसाद की समस्या का सामना कर रहा है जिसमे युवा और किशोर भी सम्लित है | उदासी, चिंता, नकारात्मक विचार आदि सभी भावना अवसाद से संबंधित है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति अवसाद ग्रस्त है| हम सभी को ना जाने कितनी ही बार अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में नकारात्मक विचार आते है और सकारात्मक सोच का उपयोग कर हम आने वाले विचार अथवा पारिस्थिति को कुछ ही समय में स्वयं के अनुकूल बना लेते है| परन्तु अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के लिए यह कर पाना बहुत ही मुश्किल कम होता है, जब भी किसी व्यक्ति में उदासी, चिंता, डर, घबराहट आदि नकारात्मक विचार एवं भावनाएँ २ या फिर २ से अधिक हफ्तों तक बनी रहती है तो व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने की सम्भावना बहुत अधिक हो जाती है| किसी व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने के अनेको कारणों में से एक जीवन में घटित अप्रिय घटनाओं से न उभर पाना है उदाहारण के तोरे पे किसी अपने की मृत्यु का हो जाना, जीवन में कुछ पाने की चाहत होने पर पूरा न हो पाना अथवा किसी भी बात को लेकर गहरी भावनात्मक ठेस पहुचना आदि | अकसर ही लोग यह बात करते हुए सुने जाते है कि कैसे कोई व्यक्ति छोटी सी बात से अवसाद ग्रस्त होकर स्वयं के बहुमूल्य जीवन को समाप्त कर सकता है परन्तु हमें जनना अवश्यक है कि किसी व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने के लिय बात अथवा घटना बड़ी या फिर छोटी होना अवश्यक नहीं है, अपितु व्यक्ति विशेष पर बात अथवा घटना का होने वाला प्रभाव महत्वपूर्ण है क्यों कि हर व्यक्ति के सोचने तथा व्यवहार का तरीका अलग-अलग होता है इसे बहुत ही छोटे उदाहरण से जाना जा सकता है, जब एक बच्चा किसी खिलोने के लिए परेशान होता है या फिर वो रोता है तो हमें लगता है कि उसे परेशान नहीं होना चाहिए जबकि जब हम छोटे थे तो हम भी वही करते थे, परन्तु आज हम क्या खिलोने के लिए रोते है नहीं ना, क्यों क्योंकि हमारे जीवन की अवश्यकता तथा मनोवैज्ञानिक सोच में बदलाव आ गया है क्योंकि आज हमारे लिए खिलोने से भी अधिक अवश्यक दूसरी चीजे है अर्थात आप कहे सकते हो कि सोच में बदलाव आने पर पारिस्थिति के प्रति नजरिये में बदलाव आ जाता है | मानव भावनाओं का पुतला है और हमें स्वयं की भावनाओ को किसी न किसी के साथ बाटने की अवश्यकता होती है, और यह न हो पाने की स्थिति में कई बार भावनात्मक रुप से कमजोर व्यक्ति अवसाद ग्रस्त हो जाते है| (यह सिर्फ एक कारण है) अगर आप के भी आस पास के सामाजिक दायरे में आप को भी कोई व्यक्ति अवसाद की समस्या से लड़ता हुआ नजर आता है तो उसकी हर संभव मदद करे| अवसाद की पहचान करने के कुछ सामान्य तरीके-
१ उदासी, चिंता, दुःख की भावनाओ का लगातार बढ़ना तथा स्वयं एवं दूसरो के प्रति नकारात्मक सोच को चाह कर भी नहीं हटा पाना|
२. एकाग्रता में कमि होना अथवा बातों को याद रखने में कठिनाई आना|
3. दिनचर्या में परिवर्तन होना- नीद न आना अथवा बहुत अधिक नीद आना,भूख न लगाना आदि|
४. व्यक्ति को बार बार आशा रहित तथा गिलानी पूर्ण विचारो का आना|
५. शारीरिक तौर पर बिना वजह थकावट महसूस करना|
6 .व्यक्ति को बार बार स्वयं के जीवन को समाप्त करने अर्थात आत्महत्या के विचारो का आना इत्यादि|
वैभव मिश्रा
मेन्टल हेल्थ काउंसलर