अवसाद से पीड़ित व्यक्ति नहीं करता अक्सर खुदखुशी ,अपितु वो करता है कोशिश दुनिया को अपने हिसाब से ढालने का ,
और फिर यही दुनिया अपने करतूतों के बाहर आ जाने के डर से उस आदमी की हत्या कर देती है । और फिर हमारे जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इस को सच्चाई मान कर डाल देते है पर्दा इस पुरे नाट्य प्रस्तुति पर । एक लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती है नाटक के संचालकों द्वारा जो रोकती है कुछ जिज्ञासु लोगों को मामले के तह में घुसने से । यही दस्तावेज पुलिस के तहखानों में धुल फांकते फांकते तोड़ देते है दम और साथ ही दम तोड़ देती है उस व्यक्ति से जुड़े लोगों की उम्मीदें । कुछ तत्त्व खड़े होकर करते है पुरजोर कोशिश कानून के पन्नो पर स्याही छिड़कने का ,और ये स्याही कभी न मिटने वाली दाग बन जाती है जो सालो साल याद दिलाती रहती है पुरे देश को, की, नहीं ! ये वो देश नहीं जहाँ राम और कृष्णा ने जन्म लिया, ये वो देश नहीं जहाँ राधा का नाम कृष्णा से पहले और सीता का नाम राम से पहले लिया जाता है । फिर नाटक का मुख्य भाग को अभिनीत किया जायेगा किसी सामाजिक मंच पर जाकर ,और की जाएगी तौहीन अपने ही देश की अभद्र भाषा के इस्तेमाल से , हक़ की लड़ाई लड़ी जाएगी उनलोगों के द्वारा जिंहोने पूरी जिंदगी औरों का हक़ मारा है,और यही नकली के नमूने लूटेंगे वाह वाही,जनता की और बन जायेंगे रोल मॉडल आने वाली मूर्ख पीढ़ियों के । और पीड़ित का परिवार इस भूखंड के किसी छोटे हिस्से में बैठकर पिटता रह जायेगा छाती अपने प्रिय को कोई किरदार न मिलता देख कर ।
कुछ दिनों बाद मिटा दिया जायेगा अभिलेख पुरे नाटक का और डाल दी जाएगी मिटटी पुरे मामले पर और कुछ महीनो बाद फिर एक नया मामला अंकुरित होगा और यह चक्र यूं ही चलता रहेगा ।