अवसाद से पीड़ित व्यक्ति नहीं करता अक्सर खुदखुशी ,अपितु वो करता है कोशिश दुनिया को अपने हिसाब से ढालने का ,और फिर यही दुनिया अपने करतूतों के बाहर आ जाने के डर से उस आदमी की हत्या कर देती है । और फिर हमारे जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इस को सच्चाई मान कर डाल देते है पर्
न खुशन उदासभले मैं अकेलाया सब आसपासशून्य की बढ़ती हुई प्यासवही लोगवही जमीन वही आकाशफिर भी परिवर्तन की आसदिन वैसे ही चढ़तावैसे ही ढलतावैसी ही रात होतीवैसे ही सोता अजीब से सपनो में खोताफिर नई सुबह होतीवो ही सब करने कोजो रोज ही होतामन न पूरा न आधाहर तरफ बंदिशों की बाधासब कुछ हासिलपर जैसे न कुछ सधा न साधा
"अवसाद" एक ऐसा शब्द जिससे हम सब वाकिफ़ हैं।बस वाकिफ़ नहीं है तो उसके होने से।एक बच्चा जब अपनी माँ-बाप की इच्छाओं के तले दबता है तो न ही इच्छाएँ रह जाती हैं ना ही बचपना।क्योंकि बचपना दुबक जाता है इन बड़ी मंज़िलों के भार तले जो उसे कुछ खास रास नहीं आते।मंज़िल उसे भी पसंद है पर र
हम सभी जानते है कि अवसाद एक मानसिक बीमारी है| अवसाद के रोगी न सिर्फ पश्चिम देशो में अपितु भारत में भी बहुत तेजी के साथ बढ़ रहे है, विश्व स्वास्थ्य स्वास्थ्य संगठन के अनुसार
कहा गया है अति सर्वत्र वर्जयेत । आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सारी बुरी बातें लिखी जाती हैं तो बहुत सारी अच्छी बातें भी लिखी जाती हैं । बहुत से लोग फेसबुक आदि पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये यहाँ वहाँ से सुवचन और महापुरुषों के कथन कट पेस्ट शेयर करते रहते हैं । कुछ लोग तो पूरे समय इसी में जुटे रहते ह