हम वृक्ष ही धरा के भूषण है
करते दूर इंसानों का प्रदूषण है।
पशु पक्षियों सबको भाते हैं हम
वसुंधरा परहरियाली लाते हैं हम।
इंसानों के पत्थर खाकर भी फल देते
हवा में फैलाएं विष को हर लेते।
प्राणवायु इनको हर पल है देते
बदले में इनसे कुछ ना लेते हैं हम।
क्या दुनिया में वृक्षों से
बड़ा कोई हितकारी है
बिना स्वार्थ के सब कुछ देते
अरे हमपेड़ बड़े उपकारी है।
उपकार मारना दूर ये
इंसान कितना अत्याचारी है
काट-काट के हम पेड़ों को
इंसानों खुद के पैर पर
मारी कुल्हाड़ी है