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गाँव की गलियों से खेतों खलिहानों से गुज़र कर स्वप्न नगरी मुंबई जहां सितारों की दुनिया से मेरा वास्ता हुआ। साहित्य, कला, संगीत जो ईश्वरीय उपहार स्वरूप जन्मजात मिला था, इन्हीं तीनों कश्तियों की सवारी करते हुए ज़िंदगी के कई साल गुजर गए। फिल्मी दुनिया मे अमूल्य 32 साल गुजारने के बाद उन्हीं खेत खलिहानों के गांव में पीपल की छाँव में वापस आकर इस समय तूलिका और रंगों से कैनवास पर दिल के जज़्बात उकेरते हुए अलग दुनिया में सफर कर रहा हूं।

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तजुर्बा

तजुर्बा

ज़िंदगी के सफ़र में जो भी तजुर्बे हुए हैं उन बातों का ज़िक्र है इस किताब में। मेरे जीने का नज़रिया ही कुछ ऐसा रहा है कि शायरी मेरे हर कदम पर ढलती रही और कलम के सहारे कागज पर उतरती रही। आगाज शायराना अंदाज शायराना, इस ज़िंदगी का हर पल हर राज शायराना। म

10 common.readCount
34 common.articles
common.personBought

ईबुक:

₹ 53/-

प्रिंट बुक:

153/-

तजुर्बा

तजुर्बा

ज़िंदगी के सफ़र में जो भी तजुर्बे हुए हैं उन बातों का ज़िक्र है इस किताब में। मेरे जीने का नज़रिया ही कुछ ऐसा रहा है कि शायरी मेरे हर कदम पर ढलती रही और कलम के सहारे कागज पर उतरती रही। आगाज शायराना अंदाज शायराना, इस ज़िंदगी का हर पल हर राज शायराना। म

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14 अक्टूबर 2022
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गहरे जल में कागज की एक कश्ती है।मेरे जिस्म में गम है, गम की मस्ती है।।धुआँ सुलग कर उठा तुम्हारी आँखों का।लरज-लरज कर दिल पर आग बरसती है।।झुलस रहा तन-बदन तुम्हारी यादों में।तुम्हें देख लेने को आँख तरसती

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14 अक्टूबर 2022
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जब तलक थे इश्क की, गलियों में हम भटके हुए।तेरे जैसे लाखों के दिल, मुझसे थे अटके हुए।इश्कबाजी छोड़ दी, जब बाल आधे पक गए।आ गए बेटों के दिन, अब बाप के दिन लद गये।।’’’’’’बिखरी हुई ये जुल्फ, और फैला हुआ काज

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14 अक्टूबर 2022
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यूँ आप रोज घर मेरे आया न कीजिए,ले ले के मेरा नाम बुलाया न कीजिए।उठने लगी हैं उंगलियाँ अब आपकी तरफ,बदनाम मेरा नाम, खुदाया! न कीजिए।।’’’’’’रूख से उठी नकाब तो दिल चूर हो गया,तारीफे-हुस्न करने पे मजबूर हो

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14 अक्टूबर 2022
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न दौलत के दलदल में, दिल को फंसाना,न शोहरत की चाहत में, अस्मत लुटाना।मोहब्बत की ऐसी, गजल बन के गूंजी,कि सदियों तलक, गुनगुनाए जमाना।।’’’’’’दूकान दिलों की, तेरी बस्ती में लाएंगे,हसरत से सैकड़ों दिल, उसमें

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14 अक्टूबर 2022
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तेरे सीने के सागर से, नज़र का भर के पैमाना,खींचकर जुल्फ का परदा, छू के रूखसार मस्ताना।लबों के जाम से, जिस दिन पियेंगे, हुश्न का प्याला,कसम से, नाम उस दिन से, तेरा, रख देंगे मयखाना।’’’’’’पीते थे कभी हम

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14 अक्टूबर 2022
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गल गया कागज, गजल के जल में जब, कल रात को।जल गया शबनम से पत्ता, सुन के गुल की बात को।चाँदनी ने आके पूछा, चाँद का मुझसे पता,मैंने तेरे घर पे भेजा, उसकी आधी रात को।।’’’’’’दर्द की बुनियाद पर है, आरजूओं का

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14 अक्टूबर 2022
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तेरी बातों का जब ख़याल हुआ।दिल को खुद से, बड़ा मलाल हुआ।।तेरे नजदीक न कुछ ठीक रहे।दूर रहकर तो, बुरा हाल हुआ।।जब भी गलियों में तेरी हम गुजरे।सारी बस्ती में, क्यों बवाल हुआ।।हिचकियाँ, हिचकियों पे आने लगी।

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14 अक्टूबर 2022
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मेरी किस्मत में, क्या कमी आई।गम ही आया, खुशी नहीं आई।।जीस्त का तल्ख़ जाम पीते रहे।पास तक मौत भी, नहीं आई।।दुश्मनों के भी होश दंग हुए।उनकी भी आँख में, नमी आई।।मेरी हालत पे सबको ग़म आया।पर मेरे यार को, ह

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14 अक्टूबर 2022
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मेरी किस्मत में, क्या कमी आई।गम ही आया, खुशी नहीं आई।।जीस्त का तल्ख़ जाम पीते रहे।पास तक मौत भी, नहीं आई।।दुश्मनों के भी होश दंग हुए।उनकी भी आँख में, नमी आई।।मेरी हालत पे सबको ग़म आया।पर मेरे यार को, ह

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14 अक्टूबर 2022
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तुम गये जिन्दगी का, मजा भी गया,मेरी खुशियों का कोई, पता ही नहीं।गये गैरों से मिल, तोड़कर मेरा दिल,फिर भी कहते हो मेरी, खता ही नहीं।।इश्क में तेरे, मर-मर के जीते रहे,तल्खियाँ जाम में, भर के पीते रहे।हाथ

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