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"भानू" प्रतापगढ़ी के बारे में

गाँव की गलियों से खेतों खलिहानों से गुज़र कर स्वप्न नगरी मुंबई जहां सितारों की दुनिया से मेरा वास्ता हुआ। साहित्य, कला, संगीत जो ईश्वरीय उपहार स्वरूप जन्मजात मिला था, इन्हीं तीनों कश्तियों की सवारी करते हुए ज़िंदगी के कई साल गुजर गए। फिल्मी दुनिया मे अमूल्य 32 साल गुजारने के बाद उन्हीं खेत खलिहानों के गांव में पीपल की छाँव में वापस आकर इस समय तूलिका और रंगों से कैनवास पर दिल के जज़्बात उकेरते हुए अलग

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"भानू" प्रतापगढ़ी की पुस्तकें
तजुर्बा

तजुर्बा

ज़िंदगी के सफ़र में जो भी तजुर्बे हुए हैं उन बातों का ज़िक्र है इस किताब में। मेरे जीने का नज़रिया ही कुछ ऐसा रहा है कि शायरी मेरे हर कदम पर ढलती रही और कलम के सहारे कागज पर उतरती रही। आगाज शायराना अंदाज शायराना, इस ज़िंदगी का हर पल हर राज शायराना। म

1 पाठक
34 रचनाएँ
101 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 53/-

तजुर्बा

तजुर्बा

ज़िंदगी के सफ़र में जो भी तजुर्बे हुए हैं उन बातों का ज़िक्र है इस किताब में। मेरे जीने का नज़रिया ही कुछ ऐसा रहा है कि शायरी मेरे हर कदम पर ढलती रही और कलम के सहारे कागज पर उतरती रही। आगाज शायराना अंदाज शायराना, इस ज़िंदगी का हर पल हर राज शायराना। म

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