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14 अक्टूबर 2022

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"भानू" प्रतापगढ़ी की अन्य किताबें

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रचनाएँ
तजुर्बा
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ज़िंदगी के सफ़र में जो भी तजुर्बे हुए हैं उन बातों का ज़िक्र है इस किताब में। मेरे जीने का नज़रिया ही कुछ ऐसा रहा है कि शायरी मेरे हर कदम पर ढलती रही और कलम के सहारे कागज पर उतरती रही। आगाज शायराना अंदाज शायराना, इस ज़िंदगी का हर पल हर राज शायराना। मैंने कभी भी लिखने की कोशिशें नहीं की, बस खुद ब खुद बना हर अल्फ़ाज़ शायराना।। डायरी के कुछ पन्ने सामने हैं जिनमे तजुर्बों की एक महक महसूस होगी जो मैंने जिया है। अगर आपका प्यार मिला तो पूरी डायरी आपके सामने होगी। शायरी कभी गढ़ी नही जा सकती महसूस की जा सकती है। पढ़कर समझना मुमकिन नही डूबकर इसे अच्छी तरह महसूस किया जा सकता है।
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आवाज की दुनिया में मेरा नाम नहीं है।(क्योंकि) संगीत बेचना हमारा काम नहीं है।।महफिल हैं दोस्तों की आज मैं भी गाऊंगा।अपनी लिखी गज़लें ही आपको सुनाऊँगा।आवाज़ को, अन्दाज को, मत साज़ को सुनिए।मेरी कलम से निकल

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आपको है क्या खबर कि अपनी ज़िन्दगी में,जाने कैसे-कैसे मोड़ से गुजर रहे हैं हम।ज़िन्दगी बटोरने की कोशिश में देखो तो,अपनी ही राह में बिखर रहे है हम।।गैर के ख्यालो ज़िन्दगी गुजार दिया,अना भी ख्याल नहीं कर रहे

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दिल को दिलबर जब मिलेगा, तब करार आ जाएगा।हम को हमदम ना मिला तो, दम निकल ही जाएगा।गैर की महफिल में जाओ, ये नहीं हमको कबूल।गर हुआ ऐसा कहर, कैसे जिगर सह पाएगा।।नाज़ मत कर हुश्न पर तू, चन्दरोजा शय है ये।आखि

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समझा नहीं था मुझको जो प्यार के काबिल।चैनो-करार छीना, क्यों छीन लिया दिल।।खंजर पे खूर, धब्बे दामन पे पड़ गए।गर्दन हमारी काट के, प्यासा रहा कातिल।।सब भूल चुका, एक याद कब्र में भी है।तेरे हसीं रुखसार पे,

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ज़िन्दगी की तल्खी से, रंजोगम से मत हारो।हद को पार करना ही, दर्द की दवा यारो।।जिसने खार बो रक्खे हैं, तुम्हारी दुनिया में।दे के फूल का तोफहा, उसको शर्म से मारो।।अपना हौसला, मज़हब, दोस्त, और महबूबा।गम का

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हुआ फिर अंधेरा, मुझे गम ने घेरा, छुपा चाँद फिर सामने आते-आते।उठा शोर महफिल से, चेहरे पे तूने, गिराया जो चिलमन उठाते - उठाते।।पिला अब मुझे साकिया हुश्न की मय, ये बोतल का पानी न सागर में ढालो।बहे सैक

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तेरे लाखों सितम, सह के भी बेवफा, हम मोहब्बत की राहों पे चलते रहे।क्या करें तेरा घर, जो न रौशन हुआ, हम चिरागों की मानिन्द जलते रहे।।दिल पे शमशीरे अबरु भी चलती रही, हमने राहे वफा में है उफ तक न की।एक

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गए-गुज़रे जमाने की लकीरों को टटोलंे क्या। जहाँ कीमत न बातों की, वहाँ बोलें तो बोले क्या।। मैं उड़ती गर्द का पीछा करुं तो होगा क्या हासिल। वजन जिसका हमें मालूम है उस शय को तोलें क्या।। तेरी चाहत की

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तेरी याद महकती है, तेरे बदन से ज्यादा।गर्मी है ख्यालों में, दिल की जलन से ज्यादा।।गैरों से लिपट बैठे, कैसा मजाक सूझा।मेरी कज़ा का तुमने, क्या कर लिया इरादा।।पर्दे में क्यों छिपे हो, क्या याद नहीं तुमको

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हाल पर मेरे ऐं हंसने वालों सुनो, रहता गर्दिश में हरदम सितारा नहीं।है भला कौन दुनिया में ऐसा बशर, जिसको किस्मत की ठोकर ने मारा नहीं।।दोनो हाथों से जब तक लुटाते रहे, लोग झूठी मोहब्बत लगाते रहे।हाथ खाली

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मेरे हमदम से दम, अब निकलने को है, अपना वादा निभाने की, कोशिश करो।अख़िरश वक्त ही, आख़िरी आ गया, आखि़री वक़्त आने की, कोशिश करो।।हमने चाहा दिलो-जाँ जिगर से तुम्हे, पर निकलना गवारा न घर से तुम्हें।मेरी मैय

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आँखों पे भवंे, पलकें, यूं रब ने बनाया है।जैसे किसी कतिल ने, शमशीर उठाया है।।हीरे की चमक ले ली, गहराई समुन्दर की।काजल तेरी आँखो ने, बादल से चुराया है।।मयनोश नहीं था मैं, पर होश गया तब से।जब से तेरी आँख

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जुल्फों की वो कस-कस कर, जंजीर बनाते हैं।है कैद किसे करना? हथियार सजाते हैं।।लहराए जो नागिनसी, बलखाई कमर पर ये।झुक जाता ज़माना ही, गर्दन जो घुमाते हैं।।सीने पे अदा से क्यों, नागिन को गिरा लेते।डस लेगी क

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होठों ने अगर तेरे, कुछ काम किया होता।लोगों ने मुझे कैसे, बदनाम किया होता।।ये हश्र न होता गर, जाते न तेरे आगे।महफिल में मेरा तूने, क्यों नाम लिया होता।।पैमाना पटक देता, मयखाने को ठुकराता।एक बार तेरे लब

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दिल तो गै़रों में गया, शाम अपने हाथों में।ता-सुबह चाहिए, बस जाम अपने हाथों में।।नाम तेरा अगर, जुड़ जाए मेरे नाम के साथ।ले लूं दुनिया के, इल्जाम अपने हाथों में।।तुझे चाहेंगे, जिन्दगी की आखिरी हद तक।हर क

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हम जान गए यारों, कुछ दाल में काला है।है हर जुबान चुप क्यों, हर हांेठ पे ताला हैं।।महफिल में मुझे देख के, हैरत में पड़ गए क्यों।लगता है कोई और, तेरा चाहने वाला हैं।।अपनों पे न गैरों पे, तुम खुद पे जान द

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न सब्र जब तक जिगर में आया,कभी खुशी भी नज़र न आई।न दिल को आया सुकून तब तक, तुम्हारी जब तक खबर न आई।।अलामतों का मुकाम आया, सलामतों का न नाम आया।क़यामातों का सफर तो आया, इनायतों की डगर न आई।।खुतूत तेरा पढ़ा

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तुम्हारा लब तो छलकता हुआ, पैमाना लगता है।हंस के जब बोलते हो, जाम का टकराना लगता है।।निगाहों का असर देखो, जिधर जाए नशा छाए।तुम्हारी आँख में चलता हुआ, मयखाना लगता है।।तुम्हारी एक अंगड़ाई पे, कितनों की कज़

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दीवानगी की हद थी, तबियत मचल गई।इतनी पिया कि दिल की, तमन्ना निकल गई।।सोचा न था करुं मैं इज़हारे मोहब्बत।देखा जो हुश्न तेरा, नीयत बदल गई।।दीदार था नज़र से दिल का था बुरा हाल।किसने किया कसूर, किस पे तीर चल

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जब से तेरा दर्द मिल गया, हमने जिन्दगी पाई।मुझको राहत-ओ-सुकून की, याद भी नहीं आई।।प्यार, वफा, इन्तजार का, रास्ता उसे बताइए।जिसने राहे इश्क में कभी, ठोकरे नहीं खाई।।बुझ न पाई दिल की तिश्नगी, क्यों निगाह

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दिया हो गम तो मेरे, दिल को बद्दुआ देना।मेरी कमी को है, वाजिब तेरा छुपा लेना।।नए जो यार मिले, इस कदर न रुख बदलो।पुराने यार को, अच्छा नहीं भुला देना।।सुना है घर में तेरे, दिल के दिए जलते हैं।रोशनी कम हो

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जिन्दगी में अजब, हादसे हो गए।दिल से जाँ में ही अब, फासले हो गए।।जब से तेरी नज़र, बददुगमां हो गई।रुह के जख्म फिर से, हरे हो गए।।छेड़ दी तेरे जुल्मों की जब दास्तां।पत्थरों के भी दिल, आइने हो गए।।दिल, कयाम

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दामन हमारे दिल का, है, चाक इस कदर।पैबन्द की जगह भी, आती नहीं नज़र।।थोड़ी सी रहनुमाई भी, जालिम को न आई।बस्ती को सारी छोड़ के, फूंका मेरा ही घर।।यह चोट तो बर्दाश्त के, काबिल ही नहीं थी।अच्छा हुआ कि पहले से

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तुमको फुर्सत न मिली, मेरा गम उठाने की।दिल की जुर्रत न हुई, तुमको भूल जाने की।।इतने काँटे चुभे सीने पे, सैरे गुलशन में।दिल को आदत सी पड़ गई है, जख्म खाने की।।तेरे सजदे में झुकी, इतनी निगाहें दर पे।हमें

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तुम गये जिन्दगी का, मजा भी गया,मेरी खुशियों का कोई, पता ही नहीं।गये गैरों से मिल, तोड़कर मेरा दिल,फिर भी कहते हो मेरी, खता ही नहीं।।इश्क में तेरे, मर-मर के जीते रहे,तल्खियाँ जाम में, भर के पीते रहे।हाथ

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मेरी किस्मत में, क्या कमी आई।गम ही आया, खुशी नहीं आई।।जीस्त का तल्ख़ जाम पीते रहे।पास तक मौत भी, नहीं आई।।दुश्मनों के भी होश दंग हुए।उनकी भी आँख में, नमी आई।।मेरी हालत पे सबको ग़म आया।पर मेरे यार को, ह

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मेरी किस्मत में, क्या कमी आई।गम ही आया, खुशी नहीं आई।।जीस्त का तल्ख़ जाम पीते रहे।पास तक मौत भी, नहीं आई।।दुश्मनों के भी होश दंग हुए।उनकी भी आँख में, नमी आई।।मेरी हालत पे सबको ग़म आया।पर मेरे यार को, ह

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तेरी बातों का जब ख़याल हुआ।दिल को खुद से, बड़ा मलाल हुआ।।तेरे नजदीक न कुछ ठीक रहे।दूर रहकर तो, बुरा हाल हुआ।।जब भी गलियों में तेरी हम गुजरे।सारी बस्ती में, क्यों बवाल हुआ।।हिचकियाँ, हिचकियों पे आने लगी।

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गल गया कागज, गजल के जल में जब, कल रात को।जल गया शबनम से पत्ता, सुन के गुल की बात को।चाँदनी ने आके पूछा, चाँद का मुझसे पता,मैंने तेरे घर पे भेजा, उसकी आधी रात को।।’’’’’’दर्द की बुनियाद पर है, आरजूओं का

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तेरे सीने के सागर से, नज़र का भर के पैमाना,खींचकर जुल्फ का परदा, छू के रूखसार मस्ताना।लबों के जाम से, जिस दिन पियेंगे, हुश्न का प्याला,कसम से, नाम उस दिन से, तेरा, रख देंगे मयखाना।’’’’’’पीते थे कभी हम

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न दौलत के दलदल में, दिल को फंसाना,न शोहरत की चाहत में, अस्मत लुटाना।मोहब्बत की ऐसी, गजल बन के गूंजी,कि सदियों तलक, गुनगुनाए जमाना।।’’’’’’दूकान दिलों की, तेरी बस्ती में लाएंगे,हसरत से सैकड़ों दिल, उसमें

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यूँ आप रोज घर मेरे आया न कीजिए,ले ले के मेरा नाम बुलाया न कीजिए।उठने लगी हैं उंगलियाँ अब आपकी तरफ,बदनाम मेरा नाम, खुदाया! न कीजिए।।’’’’’’रूख से उठी नकाब तो दिल चूर हो गया,तारीफे-हुस्न करने पे मजबूर हो

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जब तलक थे इश्क की, गलियों में हम भटके हुए।तेरे जैसे लाखों के दिल, मुझसे थे अटके हुए।इश्कबाजी छोड़ दी, जब बाल आधे पक गए।आ गए बेटों के दिन, अब बाप के दिन लद गये।।’’’’’’बिखरी हुई ये जुल्फ, और फैला हुआ काज

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गहरे जल में कागज की एक कश्ती है।मेरे जिस्म में गम है, गम की मस्ती है।।धुआँ सुलग कर उठा तुम्हारी आँखों का।लरज-लरज कर दिल पर आग बरसती है।।झुलस रहा तन-बदन तुम्हारी यादों में।तुम्हें देख लेने को आँख तरसती

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