बोल मेरी चक्की
राजा विशालसिंह के बीमार पड़ जाने से चक्की का हत्था भी थम गया। राजा बूढ़ा जो हो चला था। हर किसी को राजा से ज्यादा चिंता पहाड़ सी विशालकाय चक्की की थी। हर कोई चिंता में घुला जा रहा था। राजा के बाद चक्की को कौन घुमाएगा? यही एक सवाल था, जो हर कोई एक-दूसरे से पूछ रहा था। वह चक्की ही तो थी जो मुंह मांगी इच्छाएं पूरी करती थी। जब आवश्यकता होती तो राजा चक्की के पास जाता। हत्था घुमाते हुए कहता-”बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी दस तोला सोना सोना।” बलशाली राजा चक्की के पाट घुमाता और चक्की से सोने की अशरफियां खनखनाती हुई बाहर निकलती। कभी राजा कहता-” बोल मेरी चक्की। क्या देगी। अबकी एक हजार हाथी हाथी।” पल भर में ही हाथियों की फौज चक्की से बाहर निकलने लगती।