इक दिन बोली मुझसे नानी, मै कहती तुम सुनो कहानी
एक खेत बिन जुता पड़ा था, उबड़ खाबड़ बहुत बड़ा था
कोई चिड़िआ बीज उठा कर, उड़ती उड़ती गई डाल पर
हवा डराती धुप जलाती, मिट्टी उसको खूब दबाती
मिट्टी की गोदी में रहकर, सूरज की किरणों जलकर
कहा बीज ने हाय अकेला, पर न डरूंगा भले अकेला
कुछ दिन बीते अंकुर फूटै, कोमल कोमल पत्ते फूटे
बीज बन गया पौधा प्यारा, हरा भरा लहराता प्यारा
पोधे से बढ़ पेड कहाया, दूर दूर तक फैली छाया
बस जितने भी बड़े बने है, छोटे से बढ़ बड़े बने है