चिल्लाती रही द्रोपदी सभा मध्य, कोई क्यों नहीं कर रहा कुछ
द्रोण, भीष्मपितामह थे क्यू एकदुम चुप
कुलवधू का चीरहरण, क्या उन सबको ठीक लगा
क्यो कोई बोला ना तब दुःशासन केश खींचने लगा
क्या आर्यो की इस सभा में ना था किसी में संस्कार
क्या केवल नाम के योद्धा थे, ये थे तो एसो को फ़िर
धिक्कार
द्रोपदी चिल्लाती रही, चिखती रही क्यों, क्या किसी का खून ना खोला
कुलवधू का अपमान देख क्यों कोई पांडव ना बोला
दुशासन अग्रज की आज्ञा ले, जब रहा था साड़ी खींच
द्रोपदी देखती सभा मध्य सबको, रही थी साड़ी को भींच
जब कृष्णा ने माधव को मदद के लिए टेर भरी
माधव भागे चले आये न बिकुल भी देर करी
खिंचता रहा दुशासन साड़ी को, साड़ी का ना कोई छोरा मिला
हांफता हुआ गिरा ज़मीन पर, पसीने से था हुआ भरा
हांफता हुआ बोला दुसासन, ये केसी अदभुत नारी है
द्रोपदी में हार्डमास भी है की सारी नारी साड़ी है
एक चीर के टुकड़े के लिए, साड़ी को लंबी लादी थी
ये तो मेरे कृष्ण मुरारी की ही लीला न्यारी थी
~ भानु प्रताप सिंह इंदा