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कागज की कश्ती थी पानी का किनारा था खेलने की मस्ती थी ये दिल भी अवारा था कहा आ गए हम इस समझदारी के दल-दल मेंवो नादान बचपन भी कितना प्यारा था |http://facebook.com/Scientist.deepakjangra