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दीपावली पर एक रचना

15 अक्टूबर 2017

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अपने सिर मेँ आग लगाकर

कब तक जलते जाओगे ?

हे दीपक तुम सत्य कहो

क्या अंधकार को हर पाओगे ?

अंधकारमय हुई दिशायेँ

सबके उर मेँ अंधेरा।

जहाँ कभी था वास किरण का

वहाँ दिखे तम का डेरा।

सदियो से कर्तव्य तुम्हारा

अंधियारे को हरने का।

अपनी दीप्ति किरण से सारा

जग आलोकित करने का।

फिर बोलो क्या आज अमावस

आ जाने पर डर जाओगे ?

हे दीपक तुम सत्य बताओ

अंधकार को हर पाओगे ?

वायु प्रभंजन के झोको ने

ऐसा चक्र चलाया है।

तम के विद्रोही दीपक को

उसका ही मीत बनाया है।

जो पावन दीपक दिखता है

दूर से अंधेरे का नाशक।

गौर किया तो उसकी ही

पेँदी थी सच्ची अंधउपासक।

अंधेरे से हार मानकर

किसको मुह दिखलाओगे ?

हे दीपक तुम सत्य बताओ

अंधकार को हर पाओगे ?


✍----देवेश यादव

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