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डॉ नरेन्द्र कुमार पटेल मूलत: भगवान बुद्ध की धरती कपिलवस्तु (सिद्धार्थ नगर) उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह जनपद सिद्धार्थ नगर मेँ ही हुई है, भूगोल विषय में पी-एच॰ डी॰ (दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर उ॰प्र॰)प्राप्त डॉ पटेल प्रकृति को बख़ूबी समझते हैं जिनकी झलकिया इनकी कविताओं मेँ मिलती हैं।आपकी प्रथम पुस्तक कशिश नामक काव्य संग्रह (आइ एस बी एन -9788194403746) ऑरेंज बुक पब्लिकेशन से 2019 मे प्रकाशित हो चुकी है।आप की कविता और कहानियाँ तमाम पत्र और पत्रिकाओं मे छपती रहती हैं। आप की कविताओं मे प्रेम और प्रकृति मुख्य विषय देखने को मिलते हैं। आप की पुस्तक अमेज़न, फ्लिपकार्ट एवं गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं। साहित्य सृजन कार्य मेँ संलग्न डॉ॰ पटेल ,जे॰ के॰इन्टरनेशनल एकेडमी, शोहरतगढ़ सिद्धार्थ नगर मेँ मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।आप डॉ॰ पटेल को फेसबुक पर भी फॉलो कर सकते हैं। https://www.facebook.com/kashishsahilsuman/,डॉ नरेन्द्र कुमार पटेल मूलत: भगवान बुद्ध की धरती कपिलवस्तु (सिद्धार्थ नगर) उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह जनपद सिद्धार्थ नगर मेँ ही हुई है, भूगोल विषय में पी-एच॰ डी॰ (दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर उ॰प्र॰)प्राप्त डॉ पटेल प्रकृति को बख़ूबी समझते हैं जिनकी झलकिया इनकी कविताओं मेँ मिलती हैं।आपकी प्रथम पुस्तक कशिश नामक काव्य संग्रह (आइ एस बी एन -9788194403746) ऑरेंज बुक पब्लिकेशन से 2019 मे प्रकाशित हो चुकी है।आप की कविता और कहानियाँ तमाम पत्र और पत्रिकाओं मे छपती रहती हैं। आप की कविताओं मे प्रेम और प्रकृति मुख्य विषय देखने को मिलते हैं। आप की पुस्तक अमेज़न, फ्लिपकार्ट एवं गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं। साहित्य सृजन कार्य मेँ संलग्न डॉ॰ पटेल ,जे॰ के॰इन्टरनेशनल एकेडमी, शोहरतगढ़

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sahilkavyacaffe

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साहित्य की दुनिया में अभी बच्चा हूँ अक्ल का थोड़ा सा अभी कच्चा हूँ माफ़ करना गर हो जाएँ गुस्ताखियाँ साफ मन है मेरा दिल का सच्चा हूँ .......

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<p>साहित्य की दुनिया में अभी बच्चा हूँ </p>अक्ल का थोड़ा सा अभी कच्चा हूँ <p>माफ़ करना गर हो जाएँ गुस्ताखियाँ <br></p><p>साफ मन है मेरा दिल का सच्चा हूँ ....... <br></p>

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मुक्तक

16 जनवरी 2021
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सुलगते आग को मै इश्क़ बता देता हूँइस तरह लफ्ज़ों का मै जाल बना देता हूँजो मेरे इश्क में पतंगों से जल गये यारोंउन्ही को आज से आशिक करार देता हूँ ©®डॉ नरेन्द्र कुमार पटेल

बस इतनी सी अरदास मेरी...

28 जुलाई 2020
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"बस इतनी सी अरदास मेरी....", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :https://hindi.pratilipi.com/story/khxfaaowuhmc?utm_source=android&utm_campaign=content_shareभारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

नज़्म

27 जुलाई 2020
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दरिया संग रहकर,दरख़्त सूख जाते है ।जिन्हें उल्फ़त नहीं मिलती,वो अक्सर टूट जाते हैं ।मेरी महबूब बन कर तुम,दिखावा क्यों करती हो?चेहरे पर मुखौटे हो,तो रिश्ते टूट जाते हैं ।निभाना है जिन्हें रिश्ता,वो लब नहीं कहते।सुनाते हैं लबों से जो,वक्त पर रूठ जाते हैं ।हौसले बुलंद हो तो,मंजिल मिल ही जाती हैं ।वरना

ग़ज़ल (खुशियों के आंसू आने दो)

26 जुलाई 2020
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       ग़ज़लखुशियों के आंसू आने दोये  दरिया  है बह जाने दो। ये  सहर  अभी  होने  को  हैइन कलियों को खिल जाने दो। है खुशबू बिखर ही जायेगीभवरों   को  नज़्में  गाने  दो। हम हाथ  लकीरें  ना  जानेयह किस्मत है अजमाने दो। ये  कश्ती  ठहर ही  जायेगी'साहिल' तो नज़र आ जाने दो। ©® सर्वाधिकार सुरक्षितडॉ० नरेन्द्र

ग़ज़ल

25 जुलाई 2020
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             ग़ज़लउल्फ़त का तलबगार हूँ, जीने तो दीजियेसुर्ख होठों से अभी पीने तो दीजिये। आखों में जो सहबा प्याले में नहीं मिलताकुछ पल सही नज़रों में डूब जाने तै दीजिये। साकी बनके आया हमदम है दिल नशीउसके अधरों से अभी पीने तो दीजिये । क्यूं गुमां करते हो बुलंदी है जनाबनये परिंदों को फ़लक  उड़ने तो दीज

मुक्तक (समझ बैठा)

24 जुलाई 2020
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मेरी आसुओं को वह, अदाकारी समझ बैठातड़प कर मर रहा था मै, कलाकारी समझ बैठाबुझने से पहले दीया, भभकता , जरूर हैयह देख कर नादान, चमत्कारी समझ बैठा |  ©®  सर्वाधिकार सुरक्षितडॉ ० नरेन्द्र कुमार पटेल 'साहिल सुमन'

हर किसी को खुशी

24 जुलाई 2020
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              नज़्महर किसी को खुशी तो, है मिलता नहींहाँ मगर ग़म से कोई,भी बचता नहींजख्म मुझको मिला, फिर भी हंसता रहादर्द    देते   हैं  अपने,  पराये  नहींस्याह रात भी ऐसे रौशन  हुईरोशनी   है मगर, चांदनी  तो नहींदर्द  मेरा  किसी  को   पता   न  चलेखुद भी हंसते रहे, और हंसाते रहेये तो फितरत नहीं दर्द द

   लघुकथा- #मलाल

22 जुलाई 2020
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         ऑफिस से घर लौटते ही रोहन ने अपनी पत्नी भावना से पूछा मां को फोन की थी? हां सुबह से कई बार कर चुकी हूं! महारानी को फोन उठाने की फुर्सत हो तब ना!रोहन झुंझला कर क्या बकती हो? पत्नी पलटकर जवाब देती है 'लो खुद ही लगा लो'...और वह खुद ही कई बार फोन लगाता है एक दो बार रिंग बजने के बाद फोन स्विच ऑफ

मुक्तक

21 जुलाई 2020
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               मुक्तकमेरे लफ़्ज़ों के मोती हैं, जिन्हें तू छू नहीं सकता गरल शब्दों में तेरे हैं, जिन्हें  तू  पी नहीं सकताकाफ़िर  भले हो  जाए तू, यूं ही   मोहब्बत  कायह जिस्म जला सकता लबों को सी नहीं सकता।

लघुकथा - "दुल्हन की मौत"

20 जुलाई 2020
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          निसा आज बहुत खुश है, और हो भी क्यों ना आज सज धज कर दुल्हन के रूप में बैठी अपने साजन का इंतजार कर रही है। तभी रूपा खुशी से दौड़ती हुई आई और बताया बारात आ गई। निशा बैण्ड बाजे की तेज धुन के बीच पूरी बात सुन नहीं पाई ।लेकिन समझ कर मंद-मंद मुस्कायी ।जयमाला कार्यक्रम चल रहा है,यह आधुनिक तकनीकों

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