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मुक्तक

21 जुलाई 2020

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               मुक्तक मेरे लफ़्ज़ों के मोती हैं, जिन्हें तू छू नहीं सकता गरल शब्दों में तेरे हैं, जिन्हें  तू  पी नहीं सकता काफ़िर  भले हो  जाए तू, यूं ही   मोहब्बत  का यह जिस्म जला सकता लबों को सी नहीं सकता।
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मुक्तक

18 जुलाई 2020
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साहित्य दुनिया में अभी बच्चा हूं।अक्ल का थोड़ा सा अभी कच्चा हूं।।माफ़ करना हो भी ग'र गुस्ताखियां।साफ मन है वचन, दिल का सच्चा हूं।।

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ग़ज़ल

19 जुलाई 2020
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वज़्न- २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२संस्कारों की यहां,बलियां चढ़ाये जा रहे।बाप-बेटा साथ में, दारु पिलाये जा रहे।।हम कहां थे ये बुलंदी,ले हमें आयी कहां।बोल भी सकते नहीं जो, क्यों सताये जा रहे।।जीव हत्या पाप है जिनको सिखाया 'बुद्ध' ने।उस धरा पर जीव की बलियां चढ़ाये जा रहे।।देखते होंगे कभी जो, स्वर्ग से हमक

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      लघुकथा- "भीगी भागी लड़की"

19 जुलाई 2020
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                                 गले में गमछा टांगें राजू अपनी मस्ती में जैसे ही कालेज में प्रवेश किया अन्य लड़के- लड़कियों ने घेर लिया सभी उसपर भद्दे-भद्दे टिप्पणियां करने लगे,किसी ने पागल कहा किसी ने भिखारी। लेकिन राजू ने किसी को कोई जवाब दिए वगैर अपने क्लास रुम में जाकर सबसे पीछे की सीट पर बैठ गय

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लघुकथा - "दुल्हन की मौत"

20 जुलाई 2020
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          निसा आज बहुत खुश है, और हो भी क्यों ना आज सज धज कर दुल्हन के रूप में बैठी अपने साजन का इंतजार कर रही है। तभी रूपा खुशी से दौड़ती हुई आई और बताया बारात आ गई। निशा बैण्ड बाजे की तेज धुन के बीच पूरी बात सुन नहीं पाई ।लेकिन समझ कर मंद-मंद मुस्कायी ।जयमाला कार्यक्रम चल रहा है,यह आधुनिक तकनीकों

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मुक्तक

21 जुलाई 2020
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               मुक्तकमेरे लफ़्ज़ों के मोती हैं, जिन्हें तू छू नहीं सकता गरल शब्दों में तेरे हैं, जिन्हें  तू  पी नहीं सकताकाफ़िर  भले हो  जाए तू, यूं ही   मोहब्बत  कायह जिस्म जला सकता लबों को सी नहीं सकता।

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   लघुकथा- #मलाल

22 जुलाई 2020
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         ऑफिस से घर लौटते ही रोहन ने अपनी पत्नी भावना से पूछा मां को फोन की थी? हां सुबह से कई बार कर चुकी हूं! महारानी को फोन उठाने की फुर्सत हो तब ना!रोहन झुंझला कर क्या बकती हो? पत्नी पलटकर जवाब देती है 'लो खुद ही लगा लो'...और वह खुद ही कई बार फोन लगाता है एक दो बार रिंग बजने के बाद फोन स्विच ऑफ

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हर किसी को खुशी

24 जुलाई 2020
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              नज़्महर किसी को खुशी तो, है मिलता नहींहाँ मगर ग़म से कोई,भी बचता नहींजख्म मुझको मिला, फिर भी हंसता रहादर्द    देते   हैं  अपने,  पराये  नहींस्याह रात भी ऐसे रौशन  हुईरोशनी   है मगर, चांदनी  तो नहींदर्द  मेरा  किसी  को   पता   न  चलेखुद भी हंसते रहे, और हंसाते रहेये तो फितरत नहीं दर्द द

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मुक्तक (समझ बैठा)

24 जुलाई 2020
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मेरी आसुओं को वह, अदाकारी समझ बैठातड़प कर मर रहा था मै, कलाकारी समझ बैठाबुझने से पहले दीया, भभकता , जरूर हैयह देख कर नादान, चमत्कारी समझ बैठा |  ©®  सर्वाधिकार सुरक्षितडॉ ० नरेन्द्र कुमार पटेल 'साहिल सुमन'

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ग़ज़ल

25 जुलाई 2020
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             ग़ज़लउल्फ़त का तलबगार हूँ, जीने तो दीजियेसुर्ख होठों से अभी पीने तो दीजिये। आखों में जो सहबा प्याले में नहीं मिलताकुछ पल सही नज़रों में डूब जाने तै दीजिये। साकी बनके आया हमदम है दिल नशीउसके अधरों से अभी पीने तो दीजिये । क्यूं गुमां करते हो बुलंदी है जनाबनये परिंदों को फ़लक  उड़ने तो दीज

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ग़ज़ल (खुशियों के आंसू आने दो)

26 जुलाई 2020
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       ग़ज़लखुशियों के आंसू आने दोये  दरिया  है बह जाने दो। ये  सहर  अभी  होने  को  हैइन कलियों को खिल जाने दो। है खुशबू बिखर ही जायेगीभवरों   को  नज़्में  गाने  दो। हम हाथ  लकीरें  ना  जानेयह किस्मत है अजमाने दो। ये  कश्ती  ठहर ही  जायेगी'साहिल' तो नज़र आ जाने दो। ©® सर्वाधिकार सुरक्षितडॉ० नरेन्द्र

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नज़्म

27 जुलाई 2020
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दरिया संग रहकर,दरख़्त सूख जाते है ।जिन्हें उल्फ़त नहीं मिलती,वो अक्सर टूट जाते हैं ।मेरी महबूब बन कर तुम,दिखावा क्यों करती हो?चेहरे पर मुखौटे हो,तो रिश्ते टूट जाते हैं ।निभाना है जिन्हें रिश्ता,वो लब नहीं कहते।सुनाते हैं लबों से जो,वक्त पर रूठ जाते हैं ।हौसले बुलंद हो तो,मंजिल मिल ही जाती हैं ।वरना

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बस इतनी सी अरदास मेरी...

28 जुलाई 2020
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"बस इतनी सी अरदास मेरी....", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :https://hindi.pratilipi.com/story/khxfaaowuhmc?utm_source=android&utm_campaign=content_shareभारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

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