आज फ़िर द्रौपदी सभा में अाई है...
अपने मान के लिए चीखी चिल्लाई है....
सभी के कानों में रुई के फाहे पड़े है..!!
आज फ़िर पांडवो के सर नीचे झुके जा रहे है......
और दुस्साषन के हाथो फिर द्रौपदी के वस्त्र खींचे जा रहे है....
लगता है ये फ़िर किसी नए महाभारत का संदेश है....
यहां हर दुराचारी दुर्योधन का वेष है.....!!
हे चक्रधारी अब इस द्रौपदी की केवल तुम्हीं आश हो....
लेकिन तुम भी तो इन इंसानों से निराश हो..!!
हे द्रौपदी! अपनी इज्ज़त बचाने के लिए तुझे ही इन दुराचारियों से लड़ना पड़ेगा....
किसी कृष्ण या अर्जुन की आस मत रख..
तुझे ही तेरा कृष्ण बनना पड़ेगा.....!!
द्रौपदी! तू क्यूं भूल जाती है कि तू अग्नि की दुहिता है....
तेज से उत्पन्न, तू शक्ति की संग्रहिता है....!!
तू एक नए महाभारत का उद्घोष कर...
अर्जुन के गांडीव और कृष्ण के सुदर्शन का प्रयोग कर...!!
तू कलयुग की द्रौपदी है ये इन दुराचारियों को बतला दे...
जो तुझ पर बुरी दृष्टि डालें उसको मौत के आंचल में सुला दे....!!
‘ प्रति ’