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एक नन्ही कली..!!

15 दिसम्बर 2021

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एक कली अपने खोल से बाहर अाई,
थोड़ा सा हंसी थोड़ा मुस्कुराई.....
बाहर की दुनिया में आंखे खोली,
हवा के झोंको के साथ अपनी ही दहलीज पर थोड़ा सा डोली......

दुनियां बड़ी हसीन थी,
ऊपर नीला सा अम्बर और नीचे हरी सी जमीन थी......
वो थोड़ा और बाहर अाई,
अपनी पंखुड़ियों को फैला कर खुल कर मुस्कुराई.....


तभी आया तूफान सा हवा का एक झोंका,
उस पौधे से उसे बहुत रोका......
वो उन्मादी तूफान बहुत विकराल था,
उस कली के लिए वो साक्षात् काल था.....

कली डर गई घबरा गई,
तूफान की काली छाया से वो मुरझा गई........
पंखुड़ियों का रंग फीका पड़ गया,
तूफान भी अब अपनी शक्ति दिखाने पर अढ़ गया.....

उसने कली के अस्तित्व को रौंद डाला,
उसकी पंखुड़ियों को जमीन में बिखेर कर धूल में मिला डाला.......
कली अब पड़ी थी धरती पर बेजान,
खत्म हो गई थी उसकी वो कोमल मुस्कान....

तूफ़ान अब चला गया था दिखा कर अपना शक्ति प्रदर्शन,
पौधा भी उसे देख कर, कर रहा था करुण क्रंदन....
कली कब तक इस डर से अपने खोल में ही सिमटेगी,
क्या इस तूफान के डर से अब कोई कली नहीं खिलेगी......
                                             प्रति

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