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एक गज़ल

20 अगस्त 2022

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जो चाहा न पाया हूं क्यों ढुंढता हूं।

कमी रह गई क्या कमी ढुंढता हूं।।

बुरा हस्र होता है उपर का उठना।

मैं अपने कदम की जमीं ढुंढता हूं।।


सुना है कि रो रो कर हंसना है आता।

तभी शुष्क दृग में नमी ढुंढता हूं।

बताओ मेरे गम से क्या वास्ता है।

तुम्हारे लिए मैं खुशी ढुंढता हूं।।

कि अच्छा है मेरे लिए यह अंधेरा।

तेरे आंख में रोशनी ढुंढता हूं।।

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