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जो चाहा न पाया हूं क्यों ढुंढता हूं। कमी रह गई क्या कमी ढुंढता हूं।। बुरा हस्र होता है उपर का उठना। मैं अपने कदम की जमीं ढुंढता हूं।। सुना है कि रो रो कर हंसना है आता। तभी शुष्क दृग में नमी ढुं