एक टीस है मन में
उस टीस से इतनी ऊर्जा निकलती है
की देखने भर से पर्वत हिला दे
समुंदर को चांद से मिला दे
और तब भी बच जाए तो
एक क़तरा आंसू गिरा
छठा महासागर बना दे ।
एक टीस है मन में ! एक टीस है मन में !
न इस तरफ आराम है
न उस तरफ सुकून
एक खला है
जिसके भरे जाने की उम्मीद करना ज़ाया है
चारों तरफ मंज़र घूमते हैं
इतनी तेज़ी से बदलते जाते हैं
की साफ साफ दिख नहीं पाते
एक टीस है मन में !
खंजर की नोक जैसे धसती जाए
कलेजे में
जैसे हल्के हल्के दिल में जाती
नसों को काट रहा हो कोई
एक टीस है मन में !
जब देखती हूं बाहर तो
बहुत दूर तलक देखती जाती हूं।
न इमारतें न पहाड़ न नदियां
सब छोड़ उस लम्हे को निहारती जाती हूं
आवाजें भी है नहीं भी
शोर भी हैं सन्नाटा भी
मंज़र भी हैं वीराना भी
एक टीस है मन में !
क्या ढूंढ रही हूं
पता नहीं
क्या सोच रही हूं
सोचा नहीं
एक टीस है मन में !!!