English विंग्लिश
ये फ़िल्म कुछ ऐसी चुनिंदा फिल्मों में से है जिन्हें मैं चाहे जितनी बार देख लूँ मन नही भरता। वैसे मैं बहुत बड़ी फिल्मी कीड़ा हूँ। तालाबंदी के पहले ये आलम था कि जो नई फ़िल्म लगे शनिवार रात हम देखने चले ही जाते। तालाबंदी से थियेटर जाना तो छूट गया लेकिन वेब्सिरिज़ देखने की आदत लग गयी।
खैर आजकल की कानफोड़ू गाली गलौच और सेंसर की जाने वाली अनसेंसर्ड फिल्मों और सीरीज़ के बीच कुछ एक ऐसी फिल्में भी हैं जो तपती धरती पर बारिश की फुहारों सी लगती हैं ।
ऐसी ही साफ सुथरी न्यारी सी फ़िल्म है इंग्लिश विंग्लिश।
गौरी शिंदे के लेखन निर्देशन से सजी श्रीदेवी की फ़िल्म।
अपने घर परिवार को संवारती एक आम सी हाउस वाइफ की कहानी जो अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच भी अपने कुकिंग के शौक से चार पैसे कमाने की जद्दोजहद में सिर्फ इसलिए लगी है कि उसकी खुद की एक पहचान बने बावजूद सिर्फ एक भाषायी अज्ञानता उसे उसके ही परिवार के सदस्यों के बीच अक्सर हंसी का पात्र बना जाती है।
एक आम हिंदुस्तानी परिवार की आम सी औरत बड़ी आसानी से श्रीदेवी में खुद को देख पाती है, जब जब उसके इंग्लिश के कच्चे ज्ञान के कारण उसका मजाक बनता है वो भी उसके साथ रो पाती है।
जब पति कहता है "तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो" और श्रीदेवी कहती है "अगर अच्छा खाना नही बनाती तो शायद घर भी नही आते ना! "
उस फिल्म से खुद को जोड़ कर देखती औरत की आंखों की कोर में बिना ढलके ही एक ऑंसू का टुकड़ा आकर अटक ज़रूर जाता है।
जब बेटी के झूठ को पकड़ उसकी माँ कहती है " पढ़ाई तो घर पर भी हो सकती थी ना, उसके लिए बाहर जाने की क्या ज़रूरत थी?" तब बेटी का पलटवार " तुम पढाओगी मुझे वो भी इंग्लिश लिटरेचर" हर एक किशोरी बेटी की माँ की आँख में सैलाब ला जाता है।
पर असल कहानी ये नही है कि एक औरत इतना सब करते हुए भी वो इज़्ज़त वो मान सम्मान नही पा रही जिसकी वो हकदार है। असल कहानी तो शुरू होती है कहानी की नायिका शशि की न्यूयार्क यात्रा से।
न्यूयार्क अपनी बहन की बेटी की शादी की तैयारियों के लिए गयी शशि के मन में पल रही ग्रंथि की उसे इंग्लिश नही आती इसलिए वो समाज में उठने बैठने में अनफिट है को दूर करने का उसे मौका मिलता है जब उसे रास्ते में एक इंग्लिश ट्यूशन का नम्बर मिलता है।
और यहाँ अलग अलग जगह से आये विद्यार्थियों के बीच उसकी मुलाकात होती है लॉरेन से जो फ्रेंच शेफ है।
शशि की जिस खूबी ( लड्डू बनाना) का सतीश बात बात पर आम पतियों की तरह मज़ाक बनाता है उसी खूबी को लॉरेन सराहता है। वो शशि को एहसास दिलाता है कि वो भी खास है आम नही।
लॉरेन से मिल कर उसे महसूस होता है कि जिस इज़्ज़त की वो हकदार है जिस कदर की वो हकदार है वो कद्र तो उसने खुद ने भी खुद की कभी नही की।
लॉरेन की संगत में शशि को प्यार हो जाता है लॉरेन से नही बल्कि खुद अपने आप से।
यानी अगर आप दूसरों से खुद के लिए इज़्ज़त चाहतें हैं तो पहले खुद की इज़्ज़त करना सीखिए।
फ़िल्म का अंत आते आते ऐसी परिस्थितियां बनती चली जातीं हैं कि शादी की रस्मों में उलझी शशि आखिरी की अपनी कुछ क्लासेस में नही जा पाती और लॉरेन की सहायता से फ़ोन पर ही सुन कर वो सारा सब पूरा करती है।
यही एक सीन में जब फ़ोन रखने से पहले लॉरेन शशि के लिए अपने जज़्बात बताता है तब उन्हें सुनती शशि की बहन की बेटी राधा उससे कहती है कि वो शायद उसे पसंद करने लगा है! राधा के ये पूछने पर की क्या शशि भी तब शशि मुस्कुरा कर बहुत प्यारा जवाब देती है कि उसे प्यार की कोई ज़रूरत नही है उसे ज़रूरत है सिर्फ थोड़ी सी इज़्ज़त की।
ये हर दूसरी हिंदुस्तानी औरत की चाह है। प्यार तो उन्हें पति से बच्चों से घर परिवार से मिल ही जाता है पर इज़्ज़त?
सवाल सोचने पर मजबूर करता है कि कितने प्रतिशत औरतें इस फ़िल्म से खुद को कनेक्ट कर पातीं है और कितनी नही।
बात यहाँ वीमेन एम्पॉवरमेंट की नही है, बात रिबेल होने की भी नही है। बात ज़रा सी है कि आपका मान सम्मान आपके हाथ में हैं।
क्या हुआ जो आप घर से बाहर कमाने नही जातीं। क्या हुआ जो आप डॉक्टर इंजीनियर टीचर नर्स या बिज़नेस वीमेन नही हैं? क्या हुआ अगर आपका फिगर ज़ीरो फिगर नही है? और लास्ट बट नॉट द लीस्ट क्या हुआ अगर आप एक परफेक्ट हाउस वाइफ भी नही हैं।
आप के बाद लोग आपकी बुराइयां नही सिर्फ अच्छाइयां याद रखतें हैं तो आज आपको भी क्या ज़रूरत है अपनी कमियां देख दुखी होने की।
खुद पर विश्वास रखिये। खुद से प्यार कीजिये खुद का सम्मान कीजिये फिर देखिए सारा जहान आपका है।
मैं सुंदर हूँ। मैं परफेक्ट हूँ। मैं जो करती हूँ वो अच्छा ही होता है। ऐसा सोच कर काम शुरू कीजिए फिर देखिए कोई ऐसा काम नही जिसमें आप सफल ना हों।
पुरुषों से अधिक आज कल औरतें अवसाद का शिकार होती दिख रही हैं। इस अवसाद से बाहर आने का सबसे आसान तरीका है खुद से प्यार करना।
इंग्लिश विंग्लिश ऐसी ही thought provoking , inspiring movie है।
अगर आपने नही देखी तो एक बार जरूर देखें। एक हल्की फुल्की और शानदार मूवी जो मनोरंजक तरीके से एक बेहतरीन संदेश भी दे जाती है।
मैं फ़िल्म समीक्षक नही हूँ इसीसे एडिटिंग स्क्रीनप्ले आदि के बारे में कुछ नही कह पाऊँगी लेकिन एक्टिंग के मामले सभी कलाकार अच्छे लगे। श्रीदेवी तो बेस्ट थी बेस्ट हैं और हमेशा रहेंगी।
किसी छुट्टी वाली दोपहर का खूबसूरत पास टाइम है english विंग्लिश!!!
aparna..