मां के साथ बिताया हर लम्हा, दोस्तों मेरे लिए खास था... मां की ममता का ये सुनहरा, मेरे लिए अहसास था... स्कूल के फटें कपड़ों को, मां लड़-लड़कर सी देती थी... मेरे मना करने पर भी मां,रोटी में भरकर घी
इक दिन मैं स्कूल में, बैठा-बैठा कुछ सोच रहा था... मां का ख्याल कर खुद को, बार-बार नोंच रहा था... कि क्यों खुद का ख्याल मां नहीं रख पाती हैं ... लेता हूं उपहार मैं जब,दिवाली दोस्तों आती हैं...
याद मां की आती है,दोस्तों सबकी आंखें भर आती हैं... कभी शाम तो कभी सुबह, दोस्तों घर की याद दिलाती हैं... बैठी पेड़ की छांव में,कभी तपती दोपहरी के गांव में... आखिर मां याद आ जाती हैं, विचारों के अल
मां का नाराज होना, कभी कभी सही होता हैं... ना मानें सही बात तो मां का दिल,मन ही मन रोता हैं... नाराज़गी में मेरी मां,कभी तो मुझे देखकर रो लेती हैं... कभी मेरी मां चिंता-मुक्त, निगाहें देखकर सो ले
देख गरीबी अपने लाल की, आखिर मां क्यों रोती हैं... सब रिश्तों से बढ़कर भैया, मां तो आखिर मां होती हैं... दोस्तों अपनों के खातिर मां, जाने क्या -क्या खोती हैं... खुन के अश्रु बहाकर भैया, मां तो आखि
सरिता एक घरेलू महिला थी ,सरीता के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती थी। एक ऐसी मुस्कान, जिसे देखकर कोई भी कह सकता था कि वह दुनिया की सबसे खुशहाल महिला है। लेकिन उसकी मुस्कान का सच सिर्फ वही जानती थी। सरी
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे, इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए।
तुम्हें देखते ही ये दिल बेकरार होने लगता हैतेरी चाहत पर मुझे इक़रार होने लगता है
तुम्हें देखते ही ये दिल बेकरार होने लगता हैतेरी चाहत पर मुझे इक़रार होने लगता है
अनोखा भी है, निराला भी है, तकरार भी है तो प्रेम भी है, बचपन की यादों का पिटारा है, भाई-बहन का यह प्यारा रिश्ता है।
एहसास प्रेम का,भी कभी करोगें, या बिन पानी के मछली सा तड़पाओगे। यह तुम्हारे इंकार की बाते अच्छी नही,(2)अच्छा बताओ, इंतजार ही करवाओगें, या कभी गले भी लगाओगे।।सफ़र को पाने को बस चलता ही रहा,(2)
एक चांद आसमान में, दूसरा जमीं पर खिला,दोनों की रौशनी से, जग सारा हीरा बन गया।आसमानी चांद की चमक, जमीं के चांद का प्यार,इन दोनों के मिलन से, सजी रात की बहार।सितारे भी शर्मा गए, इस रोशनी के आगे,एक चांद
हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में डिजिटल युग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आज हर काम डीजिटल होता जा रहा है। युवा हों या उम्र दराज हर उम्र के लोग मोबाईल स्क्रीन पर बहुत ज़्यादा समय बिताने लगे हैं। स्मार्टफोन, क
रिश्तों की कड़ियों से जुड़े होंदुःख तकलीफ़ में एक दूजे के साथ खड़े होंकोई न कर पाए उन पर वारवो कहलाता है परिवार!!जहाँ सबको सबकी परवाह होसभी को अपनों का ख़्याल होकरते हों सभी एक दूसरे से प्यारवो कहलाता है प
जब तक हाथ-पैर चलते थे तब तक अंशुमन बाबू को सभी पूछते थे। घर के बुजुर्ग थे, क्यों न पूछे। लंबा चौड़ा परिवार था उनका। नाती-पोतों से भरा-पूरा घर। अंशुमन बाबू उसी नाती-पोतों के बीच घिरे रहते। कोई
किस्सा है अमरावती का, किस्सा कोई बरसों पुराना नहीं बल्कि हाल-फ़िलहाल का है | अमरावती जो 72-73 वर्ष की हैं | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्त
शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंदर - सी, बहुत प्यारी - सी और विद्यालय का गृह कार्य समय पर क
आज दिनांक 5 नवंबर 2023 की एक छोटी सी घटना !... ◆ यह छोटा सा संसार मेरा, मुझसे उम्मीदों से जुड़ा हुआ बेटी रूठी हुई थी एक ज़िद्द पर अपनी, उसकी माँ ने उम्मीद से देखा मुझको !! मैं लाचार से खड़ा हुआ, खा
आकाश एक बच्चे के नीले ब्लेजर को बड़ी ही हसरत से देख रहा था। “पापा मुझे भी ऐसा ही एक ब्लेजर दिला दो”, आकाश ने पराग के हाथ को धीरे से खींचकर कहा। “अरे क्या करेगा उसे लेकर”, पराग ने कहा, “देख न कैसे ठण
नवीन ने नयी कार क्या खरीदी बधाई देने वालों का ताँता सा लग गया। हर कोई आकर उसे नयी कार की बधायी देता ,मिठाई मांगता और फिर लगभग एक जैसे सवालों की झड़ी लगा देता,"कितने की ली? क्या एवरेज देती है? साथ में