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ग़ज़ल

14 सितम्बर 2021

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ग़ज़ल

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जो जीते जी न आए वो अज़ादारी को आएंगे |

अभी कुछ लोग मदफ़न पे अदाकारी को आएंगे॥ 


मुझे ये रात में भी चैन से सोने नहीं देंगे |

कुछ इक हैं ख़ाब जो नींदों में गम- ख़्वारी को आएंगे॥ 


यक़ीं गर हो नहीं आवाज़ देकर के ज़रा देखो |

मेरे पाले हुए ग़म हैं वफ़ादारी को आएंगे॥   


लहू का एक भी कतरा मेरा ज़ाया नहीं होगा |

हैं मुस्तक़बिल के ग़म बाकी जो ख़ूँ- ख़्वारी को आएंगे॥ 


इलाजे ग़म ही बस करते मुझे तुमने यहाँ देखा |

अभी तुम देखना कुछ लोग बीमारी को आएंगे॥ 


कहो झुठलाओगे कैसे मेरे अश्कों के सागर को |

कयी दरिया हैं जो मेरी तरफ़दारी को आएंगे॥ 


हुदूदे ग़म कहा क्या अब भी बाकी है, अभी कुछ लोग |

हमारे बाद भी यानी ग़ज़ल कारी को आएंगे॥ 


मुझे बेबस करेंगे पहले वो मा'ज़ूर होने तक |

वो ही फिर लेके बैसाखी मदद-गारी को आएंगे॥ 


- अमन कुमार साव "हैफ़"


शब्दार्थ:- 

अज़ादारी- शोक मनाना / मदफ़न- क़ब्र / अदाकारी- नाटक करना / ग़म ख़्वारी- हमदर्दी / इलाज ए ग़म- ग़म का इलाज /

हुदूद ए ग़म- ग़म की सीमा / ग़ज़ल कारी - ग़ज़ल कहना या लिखना / मा'ज़ूर- विवश, मजबूर

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Jai

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बहुत बढिया जी

14 सितम्बर 2021

अमन कुमार साव "हैफ़"

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14 सितम्बर 2021

बहुत शुक्रिया आपका

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