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गांधी की प्रासंगिकता

30 जनवरी 2015

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आधुनिक भारत के इतिहास के हर पन्ने पर आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी जो नाम पूरी आभा के साथ चमक रहा है उसके लिए भले ही किसी के पास अच्छे और किसी के बुरे शब्द हों पर उन मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ कर ऐसा स्थान प्राप्त कर चुके हैं कि आज वे भारतीय जीवन का एक अभिन्न हिस्सा नज़र आते हैं. आज़ादी के बाद से जिन नेताओं को देश चलाने की ज़िम्मेदारियाँ मिलती रही हैं उनमें से लगभग सभी ने गांधी को देखा था पर नरेंद्र मोदी उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देश की स्वतंत्रता के बाद पैदा हुई थी. संघ और भाजपा के नेता के रूप में उनके सत्ता सँभालने और गांधी के प्रति बदलते विचारों ने जहाँ एक तरफ गांधी के चरित्र को फिर से जीवित कर दिया है वहीं गांधी का हर स्तर पर विरोध करने वाले उन लोगों और विचारधाराओं को एक झटके में ही अलग कर दिया है जिसकी सोच सदैव ही गांधी के विरोध पर टिकी रही है. आज भी भारत को विदेशों में गांधी के देश के रूप में जाना पहचाना जाता है और भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों और वैश्विक शांति में लगभग हर देश के नेता गांधी के विचारों से ओतप्रोत ही नज़र आते हैं. देश की सत्ता सँभालने से पहले तक जिस तरह से संघ और भाजपा से जुड़े आम लोगों की गांधी के बारे में एक गलत धारणा ही रहा करती थी वह मोदी के गांधी के प्रति अनुराग और नीतियों के प्रति समर्पण के आगे बौनी साबित होती दिखाई दे रही हैं. इस परिवर्तन में उन लोगों को निश्चित तौर पर बहुत ही कष्टों का सामना करना पड़ रहा है जिनका सपना ही यह रहा था कि कब देश में उनके बहुमत की सरकार बने तो वे देश के इतिहास से गांधी का नाम मिटाने की अपनी कोशिशों को आगे बढ़ा सकें पर यह उनका दुर्भाग्य कहा जाये या कुछ और कि उनके पास नरेंद्र मोदी के रूप में आज जो सबसे चमकदार सितारा है वह भी आम गुजराती ही है और गांधी की वास्तविक आभा को देखते हुए कोई भी गुजराती उनको किसी भी स्तर पर नीचा दिखाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है. गांधी को देश में कोसने का जो चलन कुछ संगठनों द्वारा चलाया जा रहा है वह उनका मूल एजेंडा है क्योंकि आज़ादी की लड़ाई में उनके योगदान को पूरा देश जनता है और जिस गुलामी से भारत को गांधी ने निकालने और उसे अक्षुण्ण रखने में अपने प्राणों का बलिदान भी किया था आज भी वह प्रासंगिक है. यह भारत ही है जहाँ हम गांधी को हर तरह से कोसने वाले लोगों को भी देखते हैं पर पूरा विश्व साबरमती के उस कृष काया पर मज़बूत संकल्पित ह्रदय वाले गांधी को नहीं भूल पाया है. देश को आज़ादी के बाद जिस तरह से विद्वेष से निकालने के लिए गांधी ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए थे आज उस बलिदान को भारत आये अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भी रेखांकित करने से नहीं चूकते हैं और जाते जाते गांधी की यह सीख भी दे जाते हैं यदि भारत धार्मिक आधार पर नहीं बंटा तो उसकी तरक्की निश्चित है. सबसे चिंता कि बात यह है कि आज अमेरिकी लोगों को भारत कि तरक्की का सूत्र तो पता है पर हमारी सत्ताधारी पार्टी के लगभग हर स्तर के नेता और कार्यकर्त्ता इस सच्चाई से मुंह मोड़ने को तैयार बैठे हैं और उनके नेता और देश के पीएम देश को विकास की ऊंचाइयों तक ले जाने की बातें कर रहे हैं.
mgs pravesh

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अच्छा है

24 फरवरी 2015

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