भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने में एक समय साथ रहे सहयोगियों अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी के सक्रिय राजनीति में उतर जाने के बाद एक बार फिर से अन्ना हज़ारे ने अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. अन्ना के उस आंदोलन में जिस तरह से काफी प्रमुख भूमिका निभाने वाले अधिकतर लोग और मंच आज जिस तरह से भाजपा के पक्ष में दिखाई देने लगे हैं तो अन्ना का आगे आना बहुत महत्वपूर्ण कहा जा सकता है. अन्ना ने आज तक बिना किसी निजी स्वार्थ के ही बहुत बड़े स्तर पर अपने सामाजिक सरोकारों को ज़मीन पर उतारने की जो भी कोशिशें अभी तक की हैं उनसे उनकी किसी राजनैतिक लालसा के बारे में कोई संकेत नहीं मिलता है और आज उनकी जो गैर राजनैतिक छवि पूरे देश में बनी हुई है उसे भी बनाये रखते हुए आगे बढ़ने की ज़रुरत है. अन्ना भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं तभी वे घाघ राजनैतिज्ञों से सदैव एक दूरी बनाकर ही चलने में विश्वास किया करते हैं.
जब यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लग रहे थे तो अन्ना ने आगे बढ़कर पूरे आंदोलन का नेतृत्व किया था जिसमें अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, बाबा रामदेव आदि ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया था और काफी हद तक दिल्ली में सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में सफलता भी हसिल की थी. इस आंदोलन से उपजे हुए नेताओं ने आज अपने लिए राजनैतिक ठौर की तलाश कर ही ली है और आने वाले समय ये दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में भी हैं पर आज भी जिन कारणों से आंदोलन का जो स्वरुप बना था उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया है और केवल बयानबाज़ी करने के लिए ही भाजपा के बड़े नेताओं और खुद पीएम ने जो लुभावनी बातें की थीं आज वे ही उनके खिलाफ होने जा रही हैं. वैसे आज पीएम का ग्राफ काफी ऊपर चढ़ा हुआ है तो उसमें एकदम से कोई बड़ा परिवर्तन तो नहीं दिखाई देने वाला है पर आने वाले समय में उनकी कोरी बयानबाज़ी को लेकर उन पर होने वाले हमले तेज़ होने की पूरी संभावनाएं भी हैं.
अन्ना ने जिस तरह से सौ दिनों के भीतर काला धन देश में वापस लाए जाने की घोषणा को लेकर ही सबसे पहले मोदी सरकार पर हमला बोला है वह भाजपा के लिए कुछ हद तक मुश्किलें बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. सरकारें चाहे किसी भी दल की हों पर वे जनता से जुड़े मुद्दों पर खुद को पूरी तरह से संवेदनशील और ज़िम्मेदार दिखाने की कोशिशें ही किया करती हैं २०११ में यह स्थिति कांग्रेस के साथ थी तो आज इसका सामना भाजपा को करना है. राजनैतिक रूप से कांग्रेस ने पहले ही सौ दिनों को लेकर सरकार पर हमले शुरू कर ही दिए थे और अब अन्ना के बयानों के बाद वह सरकार पर उसी तरह से हमलावर होने वाली है जैसा हाल पहले भाजपा ने किया था. अन्ना राजनैतिक व्यक्ति नहीं हैं तो उनके पास उस स्तर पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है पर भाजपा के पास अच्छा ख़ासा जनाधार भी है जो पिछले चुनावों कांग्रेस से नाराज़ होने के कारण ही उसकी तरफ बड़े पैमाने पर झुक गया था. सरकार ने काले धन पर जो कोशिशें शुरू की हैं उनसे वास्तव में बहुत जल्दी कुछ भी ख़ास हासिल नहीं होने वाला है क्योंकि इन मसलों में कड़े अंतर्राष्ट्रीय कानून कई बार आड़े आ जाते हैं और प्रयासों का अच्छा फल नहीं दिखाई देता है अन्ना भले ही सरकार के लिए कोई संकट खड़ा न कर पाएं पर सामाजिक रूप से अब सरकार के लिए अपने को इस मुद्दे पर भ्रष्टाचार से अलग रवैय्या अपनाने के लिए बाध्य करते हुए कटघरे में तो खड़ा कर ही सकते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...