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(सफ़र-ऐ-जिंदगी-३९-बिच्छु घास का पाठ)

12 सितम्बर 2016

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इस सफ़र के पिछले सात एपिसोड यात्रा का अनुशासन तोड़कर जैसे बीच में कूद कर आ गए थे सो आज पुनः उन्हें अनुशासन का पाठ याद दिलाते हुए उसी पौड़ी गढ़वाल पहुंचता हूँ जहाँ इल्ली "आइस-बाइस" खेल के असली नाम "आई स्पाई" सीखा था।

यह तस्वीर पौड़ी के बस स्टेशन की है जो मेरी दैनिक यात्रा का दोहरा पड़ाव होता था। एक बार सुबह स्कूल जाते हुए और दुसरी बार स्कूल से लौटते हुए। यू टर्न के इस मोड़ के ढलान वाली तरफ उस समय सेब का बगीचा हुआ करता था..जहाँ पेड़ की डालियों पर लगे कच्चे सेब देखकर मन ललचाया करता था।

जीवन की पाठशाला में लालच से यू टर्न करने का उपयोगी पाठ इसी बगीचे ने सिखाया था जिसका जिक्र सफ़र-ऐ-जिंदगी के अगले किसी एपिसोड में अवश्य आएगा ...दरअसल कई बार घर लौटने के लिए सीधा रास्ता न अपनाकर इसी सेब के बगीचे वाले लंबे रास्ते से घर लौटता था जिससे घर पहुँचने में देर हो जाया करती थी। घर पहुंचकर चाय के साथ घी और नमक चुपड़ी रोटी खाना मेरी अत्यंत प्रिय डिश होती थी। यही वो समय होता जब माँ दिन भर के सभी क्रियाकलापों के बारे में पूछताछ करतीं। मसलन कौन से विषय में क्या बताया गया कक्षा में किसे सजा मिली? क्यों मिली? मेरा गृहकार्य (जी हाँ..! उस विद्यालय में "होम वर्क" को गृह कार्य ही कहां जाता था) पूरा था या नहीं?

ऐसे ही अनेक सवाल और उनके जवाब सुनकर ही वो शाम।को खेलने जाने देती थी। कुछ खेल भी अजीब होते थे...जैसे उस दिन जब हम बच्चों के झुण्ड ने इल्ली के घर के पास एक खेत में जाने का फैसला किया। पहाड़ के सीढ़ी नुमा खेतो तक पहुँचने के लिए एक खेत से दूसरे तक पहुँचने के लिए ढलान युक्त पतला रास्ता बनाया हुआ था जिस पर खेत की मालकिन ने कांटे बिछाये हुए थे। दरअसल खेत में गाजर बोई थी और खेत लहलहा रहा था..हम बच्चों का कार्यक्रम खेत में घुसकर गाजर उखाड़कर खाने का था ....बंदरो की फ़ौज की तरह छः सात बच्चों के झुण्ड ने पहले कांटे हटाकर खेत तक पहुंचने वाले रास्ते को साफ़ किया और फिर खेत में पहुंचकर गाजर उखाड़ी जाने लगीं। उखड़ी गाजर में लगी मिट्टी को अपने कपड़ों में पोछकर गाजर खा ली जाती और पत्ते उसी खेत में फेंक दिए जाते। यह कार्यक्रम पाँच सैट मिनट ही जारी रह पाया होगा कि खेत की मालकिन गालियां बकती हुयी आ धमकी। पांव में पहना जाने वाला जुराब उसने एक हाथ में पहन रखा था और उसके दूसरे हाथ में दराती थी..वो खूब सारी गालियां बक रही थी और बड़बड़ाते हुए उसने पास की झाडी से बिच्छु घास की डाली काट ली थी। मैदानी मित्रो को बताना चाहूँगा पहाड़ी क्षेत्रो में बिच्छु घास एक ऐसी व्अनस्पति होती है जिसके शरीर पर छु जाने से बिच्छु के काटने जैसा दर्द होता है....

.(जारी)

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