एक प्रेरक वक्ता अपने दर्शकों को स्ट्रेस मैनेजमेंट के बारे में समझा रहा था.
उसने एक पानी से भरा गिलास उठाया. सभी ने सोचा कि अब "गिलास आधा खाली या आधा भरा है". यही पूछा और समझाया जाएगा. लेकिन वक्ता ने पूछा. कितना वजन होगा इस गिलास में भरे पानी का? लगभग सभी ने 300 से 400 ग्राम तक अपना अंदाजा बताया. वक्ता ने कहा कुछ भी वजन मान हो फर्क नहीं पड़ता, फर्क इस बात का पड़ता है कि मैं कितने देर तक इसे उठाए रखता हूँ यदि मैं इस गिलास को एक मिनट तक उठाए रखता हूँ तो क्या होगा? शायद कुछ भी नहीं. अगर मैं इस गिलास को एक घंट तक उठाए रखता हूँ तो क्या होगा? मेरे हाथ में दर्द होने लगे और शायद हो सकता है वो अकड़ भी जाए. अब अगर मैं इस गिलास को एक दिन तक उठाए रखता हूँ तो ? तो यकीनऩ मेरा हाथ, बेहद दर्दनाक हालत में होगा, हाथ पैरालाईज भी हो सकता है और हो सकता है मैं फिर कभी हाथ न हिला पाऊं. लेकिन आपने एक चीज गौर की होगी, इन तीनों परिस्थितियों में गिलास के पानी का वजन न कम हुआ न ज्यादा.
चिंता और दुःख का भी यही रहस्य है. यदि आप अपने मन में इन्हें एक मिनट के लिए रखेंगे. आप पर कोई दुष्परिणाम नहीं होगा. यदि आप अपने मन में इन्हें एक घंटे के लिए रखेंगे, आप दर्द और परेशानी महसूस करने लगेंगें, लेकिन यदि आप अपने मन में इन्हें पूरा पूरा दिन बिठाए रखेंगे, तो ये चिंता और दुःख हमारा जीना हराम कर देंगे. हमें पैरालाईज कर सकते हैं, कुछ भी सोचने - समझने में असमर्थ कर सकते हैं. और हाँ इन तीनों परिस्थितियों में चिंता और दुःख जितना था, उतना ही रहेगा.
इसलिए मेरे दोस्तों यदि हो सके तो अपने चिंता और दुःख से भरे "गिलास" को एक मिनट के बाद नीचे रख दें.