चहकती चिड़िया, कोयल की बोली और कबूतरो की गुटर-गू....ना जाने कहा खो गई ||
बैलो की गले की घंटी - हल, बरगद का पेड़....मिटटी की खुशबू....
गॉव की माटी - खेतो के पगडंडियों की पाती पाती.....कहा खो गई ||
गॉव-गॉव खेत-खेत गुजती है...आवाज़ टक्टरो की....ना बैल रह गए ना आवाज़ रह गई पंछियो की....
गॉव से आया फिर शहर की ओर...
गॉव से आया फिर शहर की ओर...