19 मई 2020
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मेरा जन्म 14 दिसंबर 1961 को एक छोटे से
गांव सवापार जिला बस्ती उत्तर प्रदेश में हुआ था मेरे पिताजी एक खेतिहर मजदूर थे उस समय मेरे और सहपाठियों को पढ़ने के लिए पहली क्लास से ८ वीं तक कोई स्कूल नहीं था . सर्दी, गर्मी और बरसात में भी हमारी क्लास खुले में ही किसी बाग़ खेत और शिवाले आदि पर लगती थीं इस प्रकार मैंने स्कूल का मुंह ९वीं क्लास के बाद ही देखा . इसके बाद भी उस समय के शिक्षक इतने परिश्रमी थे अपने छात्रों को अपनी संतान की तरह ही समझते थे. उनके पढ़ाए हुए लाखों विद्यार्थियों में से मैं अकेला एक ऐसा निकला जो सचमुच अपने शिक्षकों और विद्यालयों का नाम रोशन किया ही साथ ही अपने गाँव क्षेत्र प्रान्त के साथ-साथ पाने विभाग और देश का नाम भी बखूबी रोशन किया. मैनें ८वीं कक्षा से ही लेखन कला में रूचि लेना शुरू कर दिया . इसका प्रतिफल यह हुआ कि छोटी -छोटी कहानियां लिखते -लिखते लगभग 300 कहानियां लिखकर 21 किताबों में समेट दिया साथ ही मैनें जीवनियां संस्मरण उपन्यास आतंकवाद पर्यावरण निष्पक्ष राजनीतिक समीक्षा धर्म और दर्शन संस्कृति और दर्शन बाल साहित्य ज्ञान -विज्ञानं मनोविज्ञान आदि के साथ सरकारी नीतियों के समर्थन के विषय पर भी कई पुस्तकें लिखीं. मैंने वेद और पुराणों की समीक्षा लिखकर उसे ऐतिहासिक रूप दिया इसके अतिरिक्त मैनें रूढ़ियों कुरीतियों और अन्धविश्वास के खिलाफ लिखते हुए सामाजिक उत्थान और विकास पर भी बहुत कुछ लिखा. इस प्रकार आज मैं बिलकुल अकेले 115 पुस्तकें लिखने में पूर्णतया सफल रहा हूँ . मेरी 30 पुस्तकें 9 राज्यों के उच्च शिक्षण संस्थानों में लगी हुई हैं और महामहिम राष्ट्रपति के करकमलों सहित आधी दर्जन पुस्तकें अखिल भारतीय स्तर पर सम्मानित और पुरस्कृत भी हैं .मुझे रेल मंत्रालय गृह मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चूका है. मैं यहाँ बता हूँ कि मैं बिलकुल एक यथार्थवादी लेखक हूँ और हमेशा यथार्थ पर ही लिखता हूँ मेरा कोई भी विषय काल्पनिक नहीं है मेरी हर पुस्तक अपने आपमें स्वयं बहुत बड़ा दर्शन हैं. साथ ही हर किताब बेहद प्रेरणाप्रद है. दर्शन के विषय में मेरा अपना 40- 45 वर्षों का शोध है. मेरी किताबें जनसामान्य को बिलकुल स्पष्ट रूप से बस यही शिक्षा देती हैं कि क्या करें और क्या न करें. मैं कोई प्रेमचंद नहीं लेकिन 25 विधाओं में उनसे कई गुना ज्यादा लिख दिया है यही मेरे जीवन की सफलता है मैं अपनी सरकारी नौकरी में प्रमोशन वगैरह से तो संतुष्ट नहीं हुआ परतु अपनी सरकारी सेवा और लेखन कार्य से पूर्णतया संतुष्ट हूँ. आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा की मैनें ये 115 किताबें सरकारी सेवा भलीभाँति निभाने के साथ-साथ ही लिखी है अभी मेरी 3 साल की सेवा शेष है और इस अवधि में भी मैं काफी किताबें लिख लूंगा धन्यवाद आपका स्नेहिल लेखक अर्जुन प्रसाद.
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मेरा जन्म 14 दिसंबर 1961 को एक छोटे से
गांव सवापार जिला बस्ती उत्तर प्रदेश में हुआ था मेरे पिताजी एक खेतिहर मजदूर थे उस समय मेरे और सहपाठियों को पढ़ने के लिए पहली क्लास से ८ वीं तक कोई स्कूल नहीं था . सर्दी, गर्मी और बरसात में भी हमारी क्लास खुले में ही किसी बाग़ खेत और शिवाले आदि पर लगती थीं इस प्रकार मैंने स्कूल का मुंह ९वीं क्लास के बाद ही देखा . इसके बाद भी उस समय के शिक्षक इतने परिश्रमी थे अपने छात्रों को अपनी संतान की तरह ही समझते थे. उनके पढ़ाए हुए लाखों विद्यार्थियों में से मैं अकेला एक ऐसा निकला जो सचमुच अपने शिक्षकों और विद्यालयों का नाम रोशन किया ही साथ ही अपने गाँव क्षेत्र प्रान्त के साथ-साथ पाने विभाग और देश का नाम भी बखूबी रोशन किया. मैनें ८वीं कक्षा से ही लेखन कला में रूचि लेना शुरू कर दिया . इसका प्रतिफल यह हुआ कि छोटी -छोटी कहानियां लिखते -लिखते लगभग 300 कहानियां लिखकर 21 किताबों में समेट दिया साथ ही मैनें जीवनियां संस्मरण उपन्यास आतंकवाद पर्यावरण निष्पक्ष राजनीतिक समीक्षा धर्म और दर्शन संस्कृति और दर्शन बाल साहित्य ज्ञान -विज्ञानं मनोविज्ञान आदि के साथ सरकारी नीतियों के समर्थन के विषय पर भी कई पुस्तकें लिखीं. मैंने वेद और पुराणों की समीक्षा लिखकर उसे ऐतिहासिक रूप दिया इसके अतिरिक्त मैनें रूढ़ियों कुरीतियों और अन्धविश्वास के खिलाफ लिखते हुए सामाजिक उत्थान और विकास पर भी बहुत कुछ लिखा. इस प्रकार आज मैं बिलकुल अकेले 115 पुस्तकें लिखने में पूर्णतया सफल रहा हूँ . मेरी 30 पुस्तकें 9 राज्यों के उच्च शिक्षण संस्थानों में लगी हुई हैं और महामहिम राष्ट्रपति के करकमलों सहित आधी दर्जन पुस्तकें अखिल भारतीय स्तर पर सम्मानित और पुरस्कृत भी हैं .मुझे रेल मंत्रालय गृह मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चूका है. मैं यहाँ बता हूँ कि मैं बिलकुल एक यथार्थवादी लेखक हूँ और हमेशा यथार्थ पर ही लिखता हूँ मेरा कोई भी विषय काल्पनिक नहीं है मेरी हर पुस्तक अपने आपमें स्वयं बहुत बड़ा दर्शन हैं. साथ ही हर किताब बेहद प्रेरणाप्रद है. दर्शन के विषय में मेरा अपना 40- 45 वर्षों का शोध है. मेरी किताबें जनसामान्य को बिलकुल स्पष्ट रूप से बस यही शिक्षा देती हैं कि क्या करें और क्या न करें. मैं कोई प्रेमचंद नहीं लेकिन 25 विधाओं में उनसे कई गुना ज्यादा लिख दिया है यही मेरे जीवन की सफलता है मैं अपनी सरकारी नौकरी में प्रमोशन वगैरह से तो संतुष्ट नहीं हुआ परतु अपनी सरकारी सेवा और लेखन कार्य से पूर्णतया संतुष्ट हूँ. आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा की मैनें ये 115 किताबें सरकारी सेवा भलीभाँति निभाने के साथ-साथ ही लिखी है अभी मेरी 3 साल की सेवा शेष है और इस अवधि में भी मैं काफी किताबें लिख लूंगा आमजन से अनुराध है कि मेरी पुस्तके खुद पढ़ें और अपने परिवार तथा अपने मित्रों को भी पढ़ने को कहें अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि आज मुझे और मेरे परिवार तथा मित्रों को मुझ पर गर्व है ऐसा हर कोई कर सकता है बस अपने मन में समाज और देश के प्रति आकर्षण और आदर होना चाहिए
धन्यवाद
आपका स्नेहिल
लेखक अर्जुन प्रसाद.
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