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हारा वही जो लड़ा नहीं

14 जनवरी 2025

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अजय की उम्र महज 2 साल की  थी तभी उसके माता पिता की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना मे हो गयी थी। बचपन मे ही अजय के ऊपर से माता पिता का साया उठ  चूका था, अजय की आगे की परवरिश कुछ सालों तक उसकी दादी ने की लेकिन दुर्भाग्यवश दादी भी एक दिन अजय का साथ छोड़ चली और पंच तत्वों मे विलीन हो गयी। इस दौरान अजय 12 वर्ष का हो चूका था दादी के देहांत के बाद अजय के मामाजी राजेंद्र उसे अपने गांव रामपुर ले आए अजय के मामाजी की गांव मे ही एक चाय नाश्ते की छोटी होटल थी...।
राजेंद्र मिश्रा पूरे दिन अपनी दुकान पर रहते थे राजेंद्र के घर मे उसकी एक पत्नी उर्वशी, एक लड़का नीलेश और एक छोटी लड़की राधिका रहती थी।
अजय के घर आने से उसकी मामीजी बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं थी। अजय 5 वी कक्षा मे पढ़ाई कर रहा था उसके मामाजी ने गांव की एक सरकारी स्कूल मे उसका दाखिला करवा दिया था। अजय का बचपन बहुत अभाव व दुःख दर्द पीड़ा मे बिता था लेकिन अजय पढ़ाई मे अच्छा था। राधिका और नीलेश दोनों नजदीकी शहर की बड़ी प्राइवेट स्कूल मे जाते थे....।
अजय के घर पर आ जाने से उर्वशी का काम और बड़ गया था जिसके कारण वह नाखुश थी और मन ही मन वह अजय से द्वेष भाव भी रखती थी। अजय का स्वभाव बड़ा सौम्य और सरल रहा अजय ज्यादा कुछ नहीं बोलता था घर वाले जितना काम बताते थे अजय उतना कर देता था। अजय के घर पर आने से अजय के कपड़े उसके लिए खाना और उसके रहने की व्यवस्था का सारा भार उर्वशी पर आ चूका था लेकिन अपने पति के भय से वह कभी अजय के प्रति खुल के विद्रोह नहीं कर सकी...।
घर के दो बच्चों की तरह अजय भी प्रतिदिन स्कूल जाता था । लेकिन उसके पास ना तो अपनी ड्रेस थी ना उसका स्कूल बेग और ना ही पेन कॉपी। कुछ चीजे उसे जरूर स्कूल से मिली थी उसी से वह अपना काम चलाता था। खाना अजय हमेशा अपने घर से ही ले जाता था लेकिन टिफिन मे प्रतिदिन एक रोटी और आम का अचार ही रहता था। उसकी मामीजी जो भोजन अपने बच्चों को टिफ़िन मे देती थी वैसा भोजन अजय को प्राप्त नहीं होता था। अजय के पास पहने को दो जोड़ी कपड़े थे वो भी फ़टे पुराने मट मेले। एक दिन अजय को उसके मामाजी दुकान का अधिक काम होने के कारण अपने साथ अपनी दुकान ले चले, जहाँ कुछ काम मे अजय ने भी अपना हाथ बटाया...।
दुकान के काम काज के चलते अजय अपनी स्कूल पहुंचने मे लेट हो गया था, अजय की शिक्षक मालती खन्ना ने बगैर कारण पूछे उसे धुप मे खड़ा रहने को कह दिया और उसे डंडे से खूब पीटा । समय बीत रहा था और अब अजय कक्षा 12 वी मे प्रवेश कर चूका था इस समय उसकी उम्र 18 वर्ष हो चुकी थी....।
कुछ ही महीनों बाद कक्षा 12 वी के परिणाम आये और अजय ने 90 % अंको के साथ अपने जिले मे टॉप किया ।
अगले दिन अजय की तस्वीर स्थानीय अख़बार मे छप गयी। जैसे अगले दिन राजेंद्र सुबह अपनी होटल पर गए और अख़बार उठाके पढना आरम्भ किया तो वह अजय की तस्वीर देखकर भौचके रह गए उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। और वे ख़ुशी के मारे दुकान से मिठाई का डिब्बा लेके तेज कदमो से अपने घर की और चल पड़े और घर जाकर उर्वशी से राजेंद्र ने पूछा उर्वशी अजय कहा है..? उर्वशी ने जवाब दिया अभी बुलाती हु उर्वशी ने अजय को आवाज लगाई और तुरंत सीढ़ीया उतरकर अजय कमरे मे आया। मामाजी ने कहा अजय बेटा तुमने कमाल कर दिया यह देखो तुम्हारी तस्वीर अख़बार मे छपी है तुमने 90 % अंको के साथ पूरे जिले मे उत्तीर्ण किया है...। यह सुनकर अजय की आँखो मे आँशु आगये और अजय ने तुरंत झुकर अपने मामा मामी के पैर छुह कर आशीर्वाद लिया...।
गांव मे भी अजय के प्रतिभा को देखते हुए ग्राम पंचायत की और से उसे लिफाफे मे 2100 ₹ की पुरस्कार राशि देके सम्मानित किया। अजय की प्रतिभा को देखते हुए उसे जिला कलेक्टर कार्यलय मे आमंत्रित किया।प्रतिवर्ष 15 अगस्त को जिला कलेक्टर द्वारा जिला कार्यलय मे प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान किया जाता है,  जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों मे अपनी प्रतिभा के आधार पर झंडा गाड़ा हो...। अजय को ज़ब मंच पर बुलाया उस समय अजय काफ़ी भावुक था उसकी आँखों मे एक चमक दिख रही थी वह चमक थी अपने संघर्ष की जिसकी सार्थकता आज सिद्ध हो चुकी थी ....! फिर अजय को मंच पर आमंत्रित किया और कलेक्टर आसुतोष वर्मा द्वारा अजय को पुष्प माला पहनाई गयी साथ ही उसे एक मेडल एक सर्टिफिकेट और 31 हजार रुपए की धन राशि पुरुस्कार स्वरुप प्रदान की गई। उसी समय उस आयोजन मे अजय के स्कूल की टीचर मालती खन्ना भी थी, जिसने अजय को एक रोज कक्षा मे देरी से पहुँचने के कारण उसे धूप मे खड़ा किया था और डंडे से पीटा भी था। मालती खन्ना की दृस्टि तुरंत अजय पर गयी और मालती दौड़ी दौड़ी अजय के पास पहुंची। मालती ने अजय से कहा बेटा अजय तुमने मुझे पहचाना अजय ने जवाब दिया नमस्कार टीचर मैंने आपको पहुँचान लिया अपने मुझे एक रोज धूप मे खड़ा कर दिया था यह सुनकर मालती को बड़ा बुरा लगा और उसने अजय से माफ़ी मांगी। लेकिन फिर टीचर ने कहा की क्या तुम्हारे माता पिता तुम्हारे साथ नहीं आये..? क्या मे तुम्हारे माता पिता से मिल सकती हु...? जिन्होंने इतने अच्छे बच्चे को जन्म दिया। मुझे याद है ज़ब तुम स्कूल आते थे तुम्हारे पास फ़टे पुराने कपड़े और पेन कॉपी भी नहीं होती थी तुम्हारे टिफिन मे एक ही रोटी आती थी तुम्हारा जीवन बहुत अभाव मे गुजरा है। मुझे तुम्हारे माता पिता से मिलना है टीचर मालती ने यह बात अजय से कही। अजय ने सर झुका के दबी आवाज़ मे भावुक होकर कहा। ज़ब मे 2 साल का था तभी मेरे माता पाता की एक सड़क दुर्घटना मे मृत्यु हो गयी थी। उसके बाद मेरे आगे का जीवन अपने मामाजी के साथ बिताया। यह सुनकर शिक्षक मालती को बहुत बड़ा झटका लगा मालती की आँखों मे तुरंत आँशु आगये और मालती ने अजय को अपने गले लगा लिया...!
और टीचर ने अजय से कहा अरे पगले चिंता क्यों करता है मे भी तो तेरी माँ जैसी हु आज से मे भी तेरा ध्यान रखूंगी एक टीचर और विद्यार्थी का यह प्रेम देख कर पास खड़े लोग भी भाव विभोर हो उठे। इसी दौरान कलेक्टर वर्मा ने अजय से भी बातचीत की और अजय के बारे मे जानने की कोशिश की । अजय की दुःख भरी दास्ता सुनके कलेक्टर साहब भी भावुक हो उठे और उन्होंने कहा सुनो अजय तुम हिम्मत मत हारना तुम अकेले नहीं हो हम सब तुम्हारे साथ है। बाद मे अजय की आगे की पढ़ाई का सारा खर्चा कलेक्टर साहब ने उठाया और अजय से कहा तुम दिल्ली विश्वविद्यालय जाओ वह देश का सबसे प्रतिष्ठित संस्थान है। इस दौरान अजय अपने परिवार व टीचर मालती खन्ना से आज्ञा ले कर दिल्ली पहुंच जाता है । अजय के बहुत अच्छे नंबर होने पर उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज मे प्रवेश मिल जाता है । कलेक्टर साहब के निवेदन पर अजय को कॉलेज मे हॉस्टल भी आवंटित हो जाता है...। यह सारा घटना क्रम बहुत जल्दी पूरा हो रहा था अजय ने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी। एक गरीब परिवार का लड़का जो अनाथ था लेकिन अजय के संघर्ष के कारण व मेहनत के कारण नियति ने उसे कहा से कहा लाकर खड़ा कर दिया था। गांव की सरकारी स्कूल से पढ़ा अजय देश के सबसे बड़े संस्थान मे पढ़ रहा था मानो अजय के लिए यह सब एक सपना था। कलेक्टर साहब के मार्गदर्शन मे अजय ने राजनीती शास्त्र मे अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर UPSC की तैयारी करने लगा। अजय को अपने कॉलेज के मित्रो व प्रोफेसर से बहुत प्यार व समर्थन मिला और अजय ने अपने दूसरे ही प्रयास मे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा मे सफलता प्राप्त की और उनका चयन IPS के पद पर हुआ ।
जैसे ही इसकी जानकारी अजय ने अपने पितातुल्य कलेक्टर आशुतोष वर्मा, अपनी टीचर मालती खन्ना और अपने मामा मामीजी को दी परिणाम स्वरूप यह खुश खबरी सुनकर सब भावुक हो उठे पूरे गांव मे मिठाया बट गयी सब लोगो ने जमके खुशियाँ मनाई...!
वर्तमान मे अजय उत्तर प्रदेश के लखनऊ मे SSP के पद पर कार्यरत है अजय आज भी सामाजिक गतिविधियो मे बहुत सक्रिय है । अजय कई NGO का संचालन कर रहे है जिसमे अनाथ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है उनके रहने की पढ़ने की व्यवस्था की जाती है। अजय का मानना है की कोई भी गरीब बेसारा बच्चा अपनी आर्थिक स्थिति के कारण पिछड़ ना जाये। वे मानते है की मनुष्य को सदा प्रयत्न करते रहना चाहिए सफलता एक दिन जरूर मिलती है।
SSP अजय एक स्कूल के कार्यक्रम मे बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहते है --- * पढ़ने की आदत सबसे महान आदत है, पढ़ने की आदत बना लेने से विचारों मे चमक आती है और शब्दों मे महानता उत्पन्न होती है। इसलिये पढ़ने की आदत बनानी चाहिए जिससे बड़ी सफलता निश्चित हो जाती है *...! आगे वे कहते है... * यदि आप वही करते जो आप हमेशा से करते आये है, तो आपको उतना ही मिलेगा जितना हमेशा से मिलता आया है * ।
आगे वे कहते है -- कुदरता का नियम है की अगली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए पिछली सीढ़ी को छोड़ना पड़ता है, जबकि अधिकांश लोग अगली सीढ़ी पर चढ़ना तो चाहते है परन्तु, पिछली सीढ़ी को छोड़ना नहीं चाहते जिससे सफलता के सारे दरवाजे बंद हो जाते है....!
बच्चों के समक्ष अपना अंतिम वक्तव्य समाप्त करते हुए वे सफलता का मूलमंत्र देते हुए कहते है --- *हारा वही जो लड़ा नहीं* ....!
लेखक - दीपक ♥️

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