कहते है अतीत सबका होता है... किसी का अच्छा होता है तो किसी का बुरा...!
घर वाले के जोर जबरदस्ती करने पर मुझे आज पूजा से मिलने जाना था... पूजा एक पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी उसने रसायन विज्ञान मे M.Sc कर रखी थी...! शुरू मे मेरा मन नहीं था की मे पूजा से आकर मिलु... लेकिन परिवार वालो से पूजा के बारे मे काफ़ी कुछ अच्छा और सकारात्मक सुना था...! इसलिये भीतर ही भीतर मेरे मन मे पूजा से मिलने की तीव्र इच्छा थी...! आप सोच रहे होंगे की मे पूजा से क्यों मिल रहा हु... दरअसल कुछ ही महीनो मे पूजा से मेरी सगाई होने वाली है... इसलिये लड़का लड़की दोनों को अच्छे से जान ले दोनों एक दूसरे से बात चित करके आपस मे घुल जाये लेकिन बाते ही बातो मे पूजा ने मेरे अतीत पर प्रश्न पूछ लिया...?
तुम्हारा बचपन कैसा गुजरा...?
तुम बचपन मे अपनी मम्मी पापा के साथ कहा कहा घूमने गए हो...?
बचपन मे तुम्हारी रूचि कीन चीजो मे थी... आदि...?
इन सारे प्रश्नों का जवाब देना मेरे लिए किसी आपदा से कम नहीं था....!
एक मन तो यह भी करा की बात यही खत्म करते है और घर चलते है लेकिन वो बार बार जिद्द कर रही थी उसने मेरे हाथों पर हाथों रखा और आँखों मे आँख डालकर प्रेम से निवेदन किया की plz मुझे आपके अतीत के बारे मे जानना है....!
मे विवश था अंत मे मैंने यही सोचा की मुझे अब आजीवन इसी के साथ रहना है... आज नहीं तो कल इसे सब कुछ बताना ही होगा.... इसलिये मैंने उसे अपने अतीत के बारे मे विस्तार से बताना ही ठीक समझा...!
1990, दिल्ली शहर मे मेरा जन्म हुआ था । घर की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी, पिता मजदूर थे, एक फैक्ट्री मे काम किया करते थे। माँ लोगो के घर बर्तन धोने जाती थी ताकि हमें दो वक्त की रोटी नसीब हो सके। घर मे एक बड़ा भाई था जो गलत संगति के कारण बिगड़ चूका था वो हमेशा नशे मे तल्लीन रहता था, माता - पिता दोनों ही मेहनत मजदूरी करके हमारा पेट पालते थे और घर का जैसे तैसे गुजारा करते थे इसलिये उन्हें लोगो की तरह कभी समय ही नहीं मिला की वह अन्य लोगो की तरह अपने बच्चों की अच्छे से परवरिश कर सके!
घर मे मुझे 2 वर्ष छोटी मेरी एक बहन लक्ष्मी भी थी, एक दिन अचानक से उसकी तबियत बिगड़ी उसे अस्पताल ले जाया गया, डॉक्टर ने उसकी स्थिति को देखते हुए ऑपरेशन के लिए 2 लाख रुपये की मांग की...। माता पिता ने कुछ पैसे बचा रखे थे ताकि आपातकाल मे कुछ काम आ सके साथ ही माँ ने अपने कुछ गहने और मकान की नीलामी करके भी हम केवल 40 हज़ार रूपये ही जुटा पाए...! ऑपरेशन मे अभी भी 1 लाख 60 हज़ार रु की आवश्यकता थी...। लक्ष्मी की तबियत बिगड़ती जा रही थी हमारे पास पैसो का और कोई स्रोत नहीं था अंतत : हम उतने पैसे इक्क्ठा नहीं कर पाए और लक्ष्मी ने अस्पताल मे ही दम तोड़ दिया...।
लक्ष्मी के मौत के कारण माता पिता को बहुत गहरा सदमा लगा....। घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी पैसो की किल्लत बढ़ती जा रही थी...पिता ने जैसे तैसे होश संभाला और वे पुनः काम पर जाने लगे....। लेकिन माँ पूरी तरह लक्ष्मी के ग़म मे डूब चुकी थी...! दूसरी तरफ बड़ा भाई नशे मे ईतना बिगड़ चूका था की वो महीनो घर नहीं आता था उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ चूका था....!
उस समय मेरी उम्र यही कोई 12 वर्ष थी, मे 6 ठी कशा मे पढ़ता था, घर की आर्थिक स्थिति के चलते मेरी स्कूल भी छूट गयी अब मुझे एक चाय की दुकान पर सुबह 7 से शाम की 7 तक मजदूरी करना पढ़ता था मुझे हर महीने 500 ₹ दिए जाते थे...!
समस्याऐ कम होने का नाम नहीं ले रही थी माँ की तबियत और बिगड़ती जा रही थी डॉक्टर ने माँ की तबियत को देखते हुए कहा की इन्हे किसी गहरी बात का सदमा लगा है इन्हे दुःख अंदर ही अंदर खाये जा रहा है...! ये ठीक से खाना भी नहीं खाती है अगर ये इसी तरह अपना जीवन जीती रही तो इनका लम्बे समय तक जीवित रहना मुश्किल है...!
पिता जी एक रोज अपनी फैक्ट्री से रात को साईकिल से घर वापिस लौट रहे थे तभी एक तेज रफ्तार कार पिताजी की साईकिल को टक्कर मार देती है जिसके कारण पिताजी को गंभीर चोट आती है उन्हें नजदीक के ही सरकारी हॉस्पिटल मे भर्ती कराया जाता है लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ घंटे ईलाज करने के दौरान उनकी मौत हो जाती है...!
यह क्षण मेरे लिए किसी सदमे में से कम नहीं था, एक बच्चे के सर से एक पिता का साया उठ जाना शायद इस पीड़ा को शब्दों में व्यक्त करना संभव न हो...!
पिताजी की मौत के बाद में घर में अकेला हो गया था, पहले लक्ष्मी की मौत, फिर माँ को सदमा पहुंचना और फिर पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु यह सब कुछ मेरे लिए किसी त्रासदी से कम नहीं था...!
अब घर में मैं और मेरी मां हम दोनों लोग ही थे डॉक्टर ने उन्हें किसी भी काम को न करने की सलाह दी थी, कुछ महीनो से उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी मैं सुबह से रात तक चाय की दुकान पर काम करता था, घर में कुछ राशन पानी भी नहीं था, मैं जब रात को अपने कम से वापस लौटता था तो रास्ते से ही ब्रेड का एक पैकेट ले आया करता था... वही हमारे भोजन का इंतजाम था मेरे सारे पैसे मां की दवाई पर खर्च हो जाते थे कभी-कभी कुछ खाने को भी नहीं होता था...। यह सब 2 वर्षों तक यूं ही चला रहा और एक रोज माँ भी हमेशा हमेशा के लिए मेरा साथ छोड़ गई, मैं हमेशा के लिए अकेला रह गया अब मेरा इस दुनिया में कोई नहीं था, मां मुझे अकेला छोड़ के चली गई...
मोहल्ले वालों ने जैसे तैसे मां का अंतिम संस्कार किया मैं दो दिनों तक नदी किनारे उस जगह बेसुध होकर पड़ा रहा जहां माँ के पार्थिव शरीर का देह संस्कार हुआ था...!
पास में ही एक मंदिर था मैंने दो राते वहीं गुजारी, चार दिनों से कुछ खाया नहीं था भयंकर भूख लगी थी मैं कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था मुझे बार-बार अपने माता-पिता की याद आ रही थी जो मुझे इस संसार में अकेला छोड़ गए मेरा इस संसार में कोई नहीं था...!
मैंने मंदिर में मौजूद ईश्वर की मूर्ति से कई बार प्रश्न किया कि आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया मुझसे मेरे माता-पिता को क्यों छिना...?
हे भगवान मैं तेरा क्या बिगाड़ा था...? मैं रोता रहा लेकिन वह बेजान मूर्ति मेरे किसी प्रश्न का जवाब नहीं दे रही थी...!
आखिर इतनी सारी कठिन परिस्थितियों के चलते एक 14 साल का बच्चा करता भी तो क्या...? मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैंने नदी में छलांग लगा दी... लेकिन उसी वक्त कुछ लोग नदी में स्नान कर रहे थे, उन्होंने जैसे ही देखा कि किसी लड़के ने नदी में चलांग लगाई है वे तुरंत ही मुझे बचाने दौड़े और सकुशल मुझे नदी से बाहर निकाला...! इसके बाद राम प्रसाद जिन्होंने मेरी जान बचाई थी आगे की मेरी परवरिशों उन्होंने खुशी-खुशी की.... क्योंकि कितने ही जतन के बाद मान मन्नतो के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी... उन्होंने इस अवसर को ईश्वर का वरदान समझा और मेरा लालन पालन किया...!
उसके बाद फिर से मेरी स्कूलिंग हुई और मैंने अपना MA इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूर्ण किया और आज में उत्तर प्रदेश सरकार में सब इंस्पेक्टर ( SI ) के पद पर कार्यरत हूँ...! बस यही मेरा अतित है आत्महत्या करने की कोशिश के बाद यह मेरा दूसरा जन्म है...में ज्यादा पुरानी चीजों को याद नहीं करना चाहता क्योंकि जब-जब मैं अपने अतीत को याद करता हूं मुझे बहुत पीड़ा होती है और मुझे छोटी बहन लक्ष्मी और माता-पिता की याद आ जाती है...!
मे हमेशा सोचता था कि मेरे जीवन में ईश्वर ने इतने दुख दर्द दीऐ, मैंने ऐसा क्या पाप किया....? उसे समय में ईश्वर की इच्छा को नहीं समझ पाया लेकिन आज लगता है कि आज मैं जहां कहीं भी हूं उसे परम पिता ईश्वर के कारण ही हूँ...वरना शायद में आज इस दुनिया में जीवित नहीं होता...! कहते है समय की अपनी योजनाएं होती हर बार इंसान गलत नहीं होता है... जीवन में अच्छे बुरे दौर आते रहते हैं लेकिन हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए, मनुष्य को कभी भी पलायन नहीं करना चाहिए हमारा यह जीवन बहुमूल्य है इसे व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए... हमें मानव देह असंभव को संभव बनाने के लिए ही प्राप्त हुई इसलिए हमें अपने जीवन में सदैव सही वक्त का इंतजार करना चाहिए क्योंकि अगर आज वक्त बुरा है तो एक रोज निश्चित हमारे जीवन में अच्छा वक्त भी आता है बस हमें अपने इश्वर पर विश्वास रखना चाहिए और जीवन में सदैव सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए बस यही जीवन का मूल मंत्र है ...!
पूजा बस मेरा यही अतीत है तुम्हारी तरह मेरा जीवन मेरा बचपन इतनी सम्पन्नता और खुशियों के साथ नहीं बिता है.... इसलिए मे अपना अतीत किसी के साथ साझा नहीं करता हूं लेकिन तुम नहीं मानी और मैं तुमसे प्रेम भी करता था इसलिए मुझे वीवश होकर तुम्हे बताना ही पड़ा...!
यह सारी कहानी सुनकर पूजा की आंखें नम हो गईं और पूजा ने तुरंत ही मुझे गले लगा लिया...!
कहते है अंत भला तो सब भला...!
लेखक --- Deepak ✨♥️