न मर जाएँ धड़कती हसरतें ,
ज़माने की परखती निगाहों से,
नुमाइश हसरतों की अक्सर,
बिखरती खुली हवाओं से ,
सुलगने दे तू इनको,
धीरे धीरे दिल के कोनों में
किसी दिन शायद शोला बन,
रोशनी कर जाएँ ज़माने में...
18 अक्टूबर 2016
न मर जाएँ धड़कती हसरतें ,
ज़माने की परखती निगाहों से,
नुमाइश हसरतों की अक्सर,
बिखरती खुली हवाओं से ,
सुलगने दे तू इनको,
धीरे धीरे दिल के कोनों में
किसी दिन शायद शोला बन,
रोशनी कर जाएँ ज़माने में...
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अभी तो शुरुआत है, अपने बारे में
कुछ समय बाद लिखना चाहूंगी.
(सिमित साँस, स्वपन अनंत, अंतरद्वंद )
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