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हिंदी करे पुकार ।

15 सितम्बर 2015

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मेरी ख़ुशी के लिए, हिंदी की रोटी खाने वाले कितने मर्द लड़े ,कितनी औरत लड़ी वृद्ध माँ की तरह मैं उपेक्षित सी हूँ एक कमरे में पड़ी मैं बन कर रह गयी उपहास, छीन लिया गया मेरा उल्लास होकर सबसे सबल ,बना दी गई निर्बल मेरे संस्कार नहीं किए गए स्वीकार ,न किया गया परिष्कार बस बातों के बतासों से तोड़ी गयी मेरी जंजीर इसलिए न बदली मेरी तक़दीर और न मिटी मेरी पीर ।.

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