शिव मन सदन विराजके, हरहु दुःखद परिताप|
त्रिकाल मे बसे रहे, सकल जगत मे आप||
बुद्धि गुन गुरु ज्ञान मे, बसत सदा जगदीश|
कहाँ बरनि मै कर सकूँ, चिंतन करत मुनीश||
चण्ड प्रचण्ड ब्रह्माण्ड मे,तांडव करत अपार|
मचत कोलाहल विश्व मे, करते करुण पुकार||
भरे भुवाल कमाल से,तेरी बानी मिशाल|
रूप अलौकिक पाय के, रचना रचे "विशाल"||
विशाल यादव "विक्की"
फरिहा,आजमगढ़, उत्तरप्रदेश