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शिव मन सदन विराजके, हरहु दुःखद परिताप|त्रिकाल मे बसे रहे, सकल जगत मे आप||बुद्धि गुन गुरु ज्ञान मे, बसत सदा जगदीश|कहाँ बरनि मै कर सकूँ, चिंतन करत मुनीश||चण्ड प्रचण्ड ब्रह्माण्ड मे,तांडव करत अपार|मचत को