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इंसानियत हुई शर्मसार भाग-1

17 सितम्बर 2021

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आप सभी ने देखा है आज के समय में सभी लोग एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में है आगे बढ़ने के चक्कर में लोग इंसानियत को शर्मसार करने से भी नहीं चूकते कुछ लोग तो रिश्तो को भी मायने नहीं देते आइए आज आपको एक ऐसी ही घटना से अवगत कराता हूं मेरी कहानी जुड़ी तो बहुत से लोगों से होगी परंतु यह पूर्णतया काल्पनिक है।।

एक लड़की थी जिसका नाम रमा था जिसमें बचपन से ही आगे बढ़ने की जिज्ञासा थी लेकिन वह अपनी गृह की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण अपनी इच्छाओं महत्वाकांक्षाओं को दबा कर रखती थी रमा अभी 14 साल की थी उसके पिता एक कान्वेंट स्कूल के प्रिंसिपल के घर नौकरी करते थे रमा को पता ही नहीं था आने वाले समय में उसे किस दसा से गुजरना पड़ेगा उसकी एक कमी थी बह बहुत जल्दी हर किसी पर विश्वास कर लेती थी आइए उसका विश्वास उसे किन रास्तों से गुजारता है कहानी के माध्यम से देखते है।।

रमा एक जिज्ञासु एवं बुद्धिमान लड़की थी परंतु अभी उसे 14 साल की उम्र में अच्छे बुरे का फर्क नहीं मालूम था कौन अपना कौन पराया है रमा एक दिन घर के बाहर खड़ी होती है तो कुछ लड़कियों को स्कूल जाते देखती है बचपन होता ही चंचल है रमा का मन भी स्कूल जाने को जागृत हो जाता है रमा अपने मन में सोचती है आज शाम को जब बापू घर आएंगे तो मां के द्वारा उनसे स्कूल जाने की बात कहूंगी शाम के इंतजार में आज रमा ने सब काम जल्दी खत्म कर लिया था अब समय आ गया था जिसका रमा को इंतजार था शाम होती है बापू घर आते हैं अपनी अम्मा से बोलती है थोड़ा शांत हो जाए आराम कर ले तो उनके सामने मेरा स्कूल जाने का प्रस्ताव रखना अपनी अम्मा को स्कूल जाने की बात सुबह ही बता देती है रमा के बापू जब खाना खा लेते हैं तब सावित्री रमा की मां धीमें स्वर में बोलती हैं अजी सुनते हो रमा के बापू एक बात कहनी थी हमारे गांव की सभी लड़कियां स्कूल जाते हैं हमारी रमा का भी मन स्कूल जाने का होता है रमा के बापू रमा को बहुत प्यार करते हैं बो रमा को अपने पास बुलाते हैं और रमा के सर पर हाथ रखकर बोलते हैं बेटी हम तो अनपढ़ हैं लेकिन तुझे हम जरूर पढ़ाएंगे कल गांव के पास जो बड़ा सा स्कूल है हम उस में तेरा दाखिला करा देंगे रमा बहुत खुश हो जाती है और अपने बापू को धन्यवाद बोलती है पूछती है बापू वह तो बहुत बड़ा स्कूल है उसकी फीस भी बहुत होगी मेरा दाखिला उसमें कैसे होगा हमारे पास इतनी फीस भी नहीं है जो  हम जमा कर सके बेटी की बातें सुन बापू शांत स्वभाव से बोलते हैं अपने सुरेश सर को जानती हो वो उस स्कूल में बड़े सर है मैं उनसे सुबह बात करके तुम्हारा दाखिला कराता हूं बेटी को आश्वासन दे बापू सोने के लिए बाहर पड़ी चारपाई पर चले जाते हैं लेकिन आज रमा को नींद नहीं आ रही वह सुबह स्कूल में अपने दाखिले को लेकर सोच रही है की मेरा दाखिला हो तो जाएगा अगर हो जाएगा तो मैं अपने बहुत सारे मित्र बनाऊंगी और मन लगाकर पढ़ाई करूंगी आज रात रमा सो भी नहीं पाती है जब सुबह रमा के बापू उठते हैं तब उनकी नजर रमा की आंखों की ओर जाती है रमा की आंखें रात भर जागने से लाल हो जाते हैं रमा के बापू रमा से कहते हैं लगता है रात भर दाखिले की खुशी से सो नहीं पाई हो हां बापू स्कूल जाने की खुशी में नींद नहीं आ पाई कोई बात नही रमा स्कूल खुलते ही हम तेरा दाखिला करा देंगे तू खूब मन लगाकर पढ़ना रमा अपने बापू के साथ स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाती है जो गांव से 500 मीटर दूर था रमा के बापू महेश स्कूल में जाने से पहले सुरेश सर से बात करते हैं साहब हमारी बच्ची आपके स्कूल में पढ़ना चाहती हैं उसकी पढ़ने में बहुत रुचि है क्या आप हमारी मदद करेंगे सुरेश सर हां क्यों नहीं तुमने हमारे यहां इतना काम किया है हम तुम्हारी बच्ची को पढ़ाएंगे तुम्हें उसकी फीस भरने की भी जरूरत नहीं है किसी ने कहा है ना जब ईश्वर की मर्जी होती है तब रास्ते खुद बनते चले जाते हैं बस हमें उन रास्ते पर चलना आना चाहिए सुरेश महेश से बोलते हैं की अपनी बच्ची को लेकर स्कूल पहुंचे मैं भी वहां आ रहा हूं मैं तुम्हारी बेटी का एडमिशन कर लूंगा आज रमा बहुत खुश हो जाती है रमा बापू के साथ स्कूल पहुंचती है और सर के आने का इंतजार करती है कुछ ही क्षणों में सुरेश सर पहुंच जाते हैं और रमा को दाखिले के लिए स्वीकृति प्रदान कर देते हैं रमा और उसके पिता सुरेश सर को धन्यवाद करते हैं सुरेश सर बोलते हैं रमा हमारी बेटी जैसी है उसकी पढ़ाई का सारा खर्च हम उठाएंगे और कुछ रुपए महेश की और बढ़ाते हैं और कहते हैं की बाजार से इस की किताबें और ड्रेस ले लेना महेश पहले तो मना करता है लेकिन बाद में सुरेश सर की बात मानकर पैसे ले लेता है  और फिर वहां से घर की ओर चल देता है।।

रमा रास्ते में आते वक्त अपने बापू का धन्यवाद करती है और कहती है कि मैं खूब मन लगाकर पड़ूंगी।।

रमा और उसके बापू बाजार से सारा सामान खरीदते हैं और घर पहुंच जाते हैं

रमा सुबह जल्दी उठती है क्योंकि आज उसके स्कूल का पहला दिन है रमा स्कूल की ओर आज उन्हीं बच्चों के साथ निकलती है जिन्हें उसने स्कूल जाते देखा था रमा स्कूल पहुंचकर अपनी कक्षा में प्रवेश करती है आज के दिन स्कूल में बच्चों का और शिक्षकों का परिचय का दिन था सभी बच्चे अपना-अपना अपना परिचय देते हैं जिसमें कोई डीएम का बच्चा होता है कोई एसडीएम का कोई एसएसपी का कोई बिजनेसमैन का लेकिन जब रमा की बारी आती है तो वह खुद को एक गरीब परिवार की लड़की बताती है जिससे शिक्षकों का और विद्यार्थियों का रमा को देखने का नजरिया बदल जाता है तुम्हें पता है यहां कितना महंगा फीस है तुम्हारे पापा कहां से पढ़ा पाएंगे एक बच्चा बोलता है इतने में सुरेश सर वहां आ जाते हैं जो सब को बताते हैं की रमा हमारी बच्ची है उसकी पढ़ाई लिखाई सब हम करेंगे इसलिए कोई भी उसे तंग नहीं करेगा सर की बात सुनकर सब लोग शांत हो जाते हैं और अपने अपने काम में लग जाते हैं लेकिन रमा अंदर ही अंदर भावुक हो जाती है और सोचने लगती है की मैं गरीब हूं इसलिए मेरा कोई दोस्त नहीं बनेगा इतने में उसी के क्लास की एक लड़की जिसका नाम श्यामा होता है वह रमा के पास आती है और बोलती है क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं क्या मैं तुम्हारी दोस्त बन सकती हूं और कहती है तुम्हें किसी के बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हारी दोस्त हूँ रमा अब खुश हो जाती है वक्त गुजरता गया रमा हाईस्कूल में आ चुकी थी बहे  हर क्लास में फर्स्ट आती थी और उसकी सभी लोग तारीफ किया करते थे रमा के एक math के teacher थे जिनका नाम सुमित था बदलते बक्त के साथ रमा में भी कुछ बदलाब हुए थे बह पहले से और ज्यादा सुन्दर लगने लगी थी जिसके चलते सुमित की नजर रमा पर रहती थी लेकिन रमा इन सभी बातो से अनजान थी बह जानती भी नही थी की ये सब क्या होता है एक दिन सुमित सर सभी बच्चों को extraclass के बारे में बताते है और कहते है मै अपने घर पढ़ाया करूंगा बच्चे काफी खुश हो जाते है सब बच्चे extraclass लेना सुरु कर देते है एक दिन रमा स्कूल और क्लास नही आती है तो सुमित सर अगले दिन की सबको छुट्टी बता देते है  अगले दिन रमा अकेले क्लास के लिये चली जाती है उसदिन क्लास में कोई नही होता है रमा सुमित सर से सर आज कोई आयेगा नही सुमित सर कल मैंने छूटी कर दी थी लेकिन तुम आये हो तो मैं पढाता हूँ।।

रमा ठीक है सर लेकिन आज रमा सुमित के इरादों को नही समझ पा रही थी सुमित आज रमा के बिलकुल बराबर में बैठ जाता है और किसी न किसी बहाने से touch करना सुरु कर देता है कुछ देर बाद सुमित कुर्सी से उठता है और धीरे से रमा की कुर्सी के पीछे जाकर रमा की गर्दन पर हाथ रखता है और रमा की गर्दन को और उसके गालो को छूने लगता है फिर सुमित सामने आता है और रमा को I L U बोलकर गले लगा लेता है रमा कहती है सर ये आप क्या कर रहे है ये ठीक नही लेकिन सुमित रमा की नही सुनता है सुमित को धक्का देकर बहा से भाग कर सीधा घर आती है लेकिन किसी को कुछ बताती नही है बस गुमसुम सी बैठ जाती है सुमित बहुत डर जाता है की कही रमा किसी को कुछ बोल न दे आज रमा के चहरे पर मुस्कराहट न थी चंचल सी लड़की शांत सी थी ।।

क्या रमा ने किसी को कुछ बताया?

सुमित के साथ आगे क्या होगा?

जान्ने के लिए मेरी कहानी का दूसरा भाग पढ़िए।।

मेरी कहानी पढ़ने बालो से अनुरोध है की आपको अपने बच्चों में अगर जरा सी बदलाब दिखे तो उसे प्यार से जानने की कोशिश करे ।।

अजय मोहन शर्मा


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