यह इश्क़ क्या है,..? शायद पानी सा तरल जो परिवार और समाज के घोर विरोध से उत्पन ज़िद की चट्टानों की दरारों से भी रिस आता है,,इश्क़ पीपल है, जो कहीं भी उग आता है,ओर बिना किसी देखभाल के जमीन की गहराई तक अपनी जड़ों को मज़बूत कर विशाल रूप धारण कर लेता है,इश्क़ सागर है, जिसकी गहराई में लाखो बेशकीमती मोती होते हैं,,पर हजारों प्रयास के बाद गोताखोर को मुश्किल से असली मोती नसीब होता है,यहां गौर करने वाली बात यह है,की बिना गहराई में जाएं बिना मोती भी हासिल नहीं होता है,,तो इश्क तो मोती से भी कीमती है,इश्क किसी नदी की तरह है, जिसके स्वभाव में रुकना नही बहते जाना है,बस इश्क भी जब होता है,,तो ठहरता कहां है..? इश्क शीशा है जो सत्य के माफिक पारदर्शी है,जहां कुछ छुपाया नही जा सकता है,,जहां कुछ छुपाया वहीं विश्वास की माला चूर चूर हो जाती है,ओर प्रेम का एक एक दाना बिखर जाता है,इश्क बरगद है जो फैल जाएं तो दूर तक जाता है,इश्क आसमान है जो अनन्त तक फैला हुआ है,इश्क जमीन है जिस पर खुशियों का जहान बसा हुआ है,कभी कभी लगता है,की इश्क़ मासूम बच्चे सा है,जिसमे छल नहीं होता है,इश्क पूजा और इबादत है जिसमे कोई शक की जगह हो ही नही सकती है,इश्क बेमोल है,इसकी कीमत तय नही की जा सकती है,इश्क बन्धन है,पर हैरत की इसमें कोई जंजीर नही है,इश्क हद में रहकर बेहद होता है,और जब ये इश्क अपने इष्ट से हो तो इश्क पूरी दुनिया है,