इश्क हो या इबादत,,,,,,,,,
,,,,,कर के ही समझ आता है,
यूं ही रान्झे सा आशिक,,और,,,,,
मीरा सा दीवाना हुआ नहीं जाता।।
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इश्क करूँ,,,,,,या करूँ इबादत,,,,,
कि हर तरफ वो ही नज़र आता है,
उस के सिवा, कुछ और,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,सोचा भी नहीं जाता।।
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कैसे समझाएं इस नादान दिल को,,,
बार-बार नादानियोँ पे उतर आता है,,
कभी ये बिन बात के रोता ,,,,,,,,,,
,,,,,,,कभी बे-वजह ही है मुस्कुराता।।
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खेल इश्क का भी क्या खूब है "शायरा",
कि जां भी निकलती जाती है और,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मरा भी नहीं जाता।।
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"शायरा"✍✍