कब कोई कोरे पन्नो को पढ़ पाता हैं।
कब कोई ख़ामोशी को सुन पाता हैं।
शोरगुल , भीड़ और आपाधापी के बीच।
भीतर एक सन्नाटा हैं।
लिखते लिखते यु ही।
अश्क अक्सर ढल जाते हैं।
जीवन भागता रहता हैं।
क्या हम समझ पाते हैं.
-राहुल
7 जुलाई 2016
कब कोई कोरे पन्नो को पढ़ पाता हैं।
कब कोई ख़ामोशी को सुन पाता हैं।
शोरगुल , भीड़ और आपाधापी के बीच।
भीतर एक सन्नाटा हैं।
लिखते लिखते यु ही।
अश्क अक्सर ढल जाते हैं।
जीवन भागता रहता हैं।
क्या हम समझ पाते हैं.
-राहुल
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Rebel by Nature| Speaks what I see. Conceptualize that Humanaire™(http://www.Humanaire.com ) is the only hope to save Our Planet, The Earth!
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