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कब कोई कोरे पन्नो को पढ़ पाता हैं।कब कोई ख़ामोशी को सुन पाता हैं।शोरगुल , भीड़ और आपाधापी के बीच।भीतर एक सन्नाटा हैं।लिखते लिखते यु ही।अश्क अक्सर ढल जाते हैं।जीवन भागता रहता हैं।क्या हम समझ पाते हैं.-राहुल मैं कहता आँखन देखी.: जीवन