कभी कभी अकेला रहना सुकून देता है,शायद मन की शांति के लिए कुछ पल खुद के साथ बिताना ज़रूरी भी है,ज़िन्दगी की भागदौड़ में हम इतने ही व्यस्त हो जाते हैं कि हम खुद को ही भूल जाते हैं....
अक्सर मेरे साथ भी यही होता है,तो जब भी लगता है कि थोड़ी शांति चाहिए,तो कानों में इयरफोन लगाए पहुंच जाती हूँ मैं छत पर....चुपचाप थोड़ी देर के लिए खुद के साथ वक़्त बिताने , खुली आसमान के नीचे टिमटिमाते तारों तले, एक अजीब सी शांति मिलती है....जब ये हवाएं मुझे छूकर गुज़रती हैं तो ऐसा लगता है मानो सारा दर्द समेट कर ले जा रही हो अपने साथ....
कुछ ऐसा ही हुआ आज भी,,,,तो पहुंच गई अपनी पसंदीदा जगह,कुछ देर के लिए ......इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी से दूर,,अपनी दुनिया में,,,,,आजकल के नए जमाने के गानों से हटकर मुझे किशोर कुमार,मोहम्मद रफी,लता मंगेशकर के गाने ज़्यादा पसन्द हैं,,,,तो लगाया इयरफोन और चला लिया किशोर कुमार जी एक गाना,"ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना ,यहां कल क्या हो किसने जाना"......70 की दशक में रिलीज़ हुए इस गाने ने काफी लोकप्रियता हासिल की थी ........
मेरे घर के सामने से एक सड़क गुज़रती है....तो गाना सुनते सुनते नज़र उस सड़क पर चली गयी....जहां नाज़ाने कितने लोग आते जाते दिख रहे थे......कुछ लोग दो पल के लिए कहीं ठहरते ,और फिर चले जाते,,,,,कुछ गाड़ियां पों पों की आवाज़ करती साएं से गुज़र जाती ......नाज़ाने क्यों,पर ये सब देखना काफी सुकून दे रहा था मुझे...
गाना सुनते सुनते मेरा ध्यान अचानक उसके बोल पर चला गया....और मैं डूब गई ख्यालों में,,,,सही ही तो कहा है किशोर जी ने.....ये ज़िन्दगी एक सफर ही तो है,जिसकी बस मंज़िल का पता है हमें ,,,,,राहें कैसी हैं आगे क्या होगा कौनसा मोड़ आएगा,कौन हमसफर बनेगा.....किसीको कुछ नहीं पता.....
जन्म के पहले ही दिन से शुरुआत हो जाती है इस सफर की....जैसे जैसे आगे बढ़ते जाते हैं ,राहें खुलती जाती हैं ....और सफर में नाज़ाने कितने ही अनजान लोग भी मिलते जाते हैं,कुछ महीनों के लिए साथ देते हैं और कुछ साल भर के लिए....कुछ लोग पल में बिछड़ जाते हैं और कुछ लोग हमसफर बन ज़िंदगी भर साथ निभाते हैं.....!!
अक्सर देखा है हमने की लोगो के बीच राह में साथ छोड़ देने से हमें लगता है ये ज़िन्दगी खत्म हो गयी,,,क्योंकि उन्होंने हाथ जो छुड़ा लिया,,हमें अकेला छोड़ दिया,अब उनके बगैर ज़िन्दगी ही नहीं....पर क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी ट्रेन से सफर कर रहे और बीच राह में कोई मुसाफिर सवार हुआ हो उसी ट्रेन पर? उसकी आपसे अच्छी बनने लगती है ,पर वो आपसे पहले किसी स्टेशन पर उतर जाता है?? तो क्या आप अपनी मंजिल बदल कर उसके लिए गलत राह पकड़ लेते हैं?? शायद नहीं......थोड़ा दर्द बेशक़ होता है कि बीच राह में साथ छूट गया,पर सफर तो अधूरा नहीं छोड़ते न आप?तो फिर किसी हमसफ़र के बीच राह में साथ छोड़ देने से ये सफर क्यों अधूरा रखना?? किसीको नहीं पता कि आगे क्या होगा,,,हो सकता शायद कोई उससे भी ज़्यादा अच्छा मुसाफिर आपको आगे राह में मिल जाए...
हां,ये सच है कि लोग ज़िन्दगी में आते हैं हाथ थामते हैं तो एक सहारा बेशक़ बन जाता है और जब यही लोग चले जाते हैं तो थोड़ी देर के लिए ही सही पर हम गिर जाते हैं, टूट जाते हैं,,,,,पर अगर गिरेंगे नहीं तो खड़े कैसे होंगे,खड़े नहीं हुए तो चलेंगे कैसे और संभलेंगे कैसे?अगर मंज़िल तक पहुंचना होगा तो चलना तो ज़रूरी है न......चाहे कोई साथ हो या ना हो,,,अकेले ही सही पर चलना है.....मंज़िल आपकी है,,,तय भी आपको ही करना है,लोग आएंगे और चले जायेंगे....बस आप अपनी सीट पकड़कर बैठिए और नज़ारा देखिये,, मज़े लीजिये सफर के....सही वक्त और सही हालात,सही मुसाफिर के साथ आपको आपकी मंज़िल तक ज़रूर पहुंचाएगा...
तभी अचानक ट्यून बदली और मैं लौट आई अपने ख्यालों के इस बवंडर से...मैंने एक लंबी गहरी सांस ली और मुस्कुरा कर ताकने लगी उसी सड़क पर..... शायद जिस सुकून की तलाश थी मुझे मुद्दतों से,वो मिल चुकी थी...! बारिश की कुछ बूंदे चेहरे पर गिरी.....और मैं उठकर निचे आ गयी अपने रूम में....ईयरफोन पर अब भी एक गाना बज रहा था "आते जाते खूबसूरत, आवारा सड़कों पे,कभी कभी इत्तेफाक से,,,,कितने अनजान लोग मिल जाते हैं ....उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं "......!!
अक्सर मेरे साथ भी यही होता है,तो जब भी लगता है कि थोड़ी शांति चाहिए,तो कानों में इयरफोन लगाए पहुंच जाती हूँ मैं छत पर....चुपचाप थोड़ी देर के लिए खुद के साथ वक़्त बिताने , खुली आसमान के नीचे टिमटिमाते तारों तले, एक अजीब सी शांति मिलती है....जब ये हवाएं मुझे छूकर गुज़रती हैं तो ऐसा लगता है मानो सारा दर्द समेट कर ले जा रही हो अपने साथ....
कुछ ऐसा ही हुआ आज भी,,,,तो पहुंच गई अपनी पसंदीदा जगह,कुछ देर के लिए ......इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी से दूर,,अपनी दुनिया में,,,,,आजकल के नए जमाने के गानों से हटकर मुझे किशोर कुमार,मोहम्मद रफी,लता मंगेशकर के गाने ज़्यादा पसन्द हैं,,,,तो लगाया इयरफोन और चला लिया किशोर कुमार जी एक गाना,"ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना ,यहां कल क्या हो किसने जाना"......70 की दशक में रिलीज़ हुए इस गाने ने काफी लोकप्रियता हासिल की थी ........
मेरे घर के सामने से एक सड़क गुज़रती है....तो गाना सुनते सुनते नज़र उस सड़क पर चली गयी....जहां नाज़ाने कितने लोग आते जाते दिख रहे थे......कुछ लोग दो पल के लिए कहीं ठहरते ,और फिर चले जाते,,,,,कुछ गाड़ियां पों पों की आवाज़ करती साएं से गुज़र जाती ......नाज़ाने क्यों,पर ये सब देखना काफी सुकून दे रहा था मुझे...
गाना सुनते सुनते मेरा ध्यान अचानक उसके बोल पर चला गया....और मैं डूब गई ख्यालों में,,,,सही ही तो कहा है किशोर जी ने.....ये ज़िन्दगी एक सफर ही तो है,जिसकी बस मंज़िल का पता है हमें ,,,,,राहें कैसी हैं आगे क्या होगा कौनसा मोड़ आएगा,कौन हमसफर बनेगा.....किसीको कुछ नहीं पता.....
जन्म के पहले ही दिन से शुरुआत हो जाती है इस सफर की....जैसे जैसे आगे बढ़ते जाते हैं ,राहें खुलती जाती हैं ....और सफर में नाज़ाने कितने ही अनजान लोग भी मिलते जाते हैं,कुछ महीनों के लिए साथ देते हैं और कुछ साल भर के लिए....कुछ लोग पल में बिछड़ जाते हैं और कुछ लोग हमसफर बन ज़िंदगी भर साथ निभाते हैं.....!!
अक्सर देखा है हमने की लोगो के बीच राह में साथ छोड़ देने से हमें लगता है ये ज़िन्दगी खत्म हो गयी,,,क्योंकि उन्होंने हाथ जो छुड़ा लिया,,हमें अकेला छोड़ दिया,अब उनके बगैर ज़िन्दगी ही नहीं....पर क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी ट्रेन से सफर कर रहे और बीच राह में कोई मुसाफिर सवार हुआ हो उसी ट्रेन पर? उसकी आपसे अच्छी बनने लगती है ,पर वो आपसे पहले किसी स्टेशन पर उतर जाता है?? तो क्या आप अपनी मंजिल बदल कर उसके लिए गलत राह पकड़ लेते हैं?? शायद नहीं......थोड़ा दर्द बेशक़ होता है कि बीच राह में साथ छूट गया,पर सफर तो अधूरा नहीं छोड़ते न आप?तो फिर किसी हमसफ़र के बीच राह में साथ छोड़ देने से ये सफर क्यों अधूरा रखना?? किसीको नहीं पता कि आगे क्या होगा,,,हो सकता शायद कोई उससे भी ज़्यादा अच्छा मुसाफिर आपको आगे राह में मिल जाए...
हां,ये सच है कि लोग ज़िन्दगी में आते हैं हाथ थामते हैं तो एक सहारा बेशक़ बन जाता है और जब यही लोग चले जाते हैं तो थोड़ी देर के लिए ही सही पर हम गिर जाते हैं, टूट जाते हैं,,,,,पर अगर गिरेंगे नहीं तो खड़े कैसे होंगे,खड़े नहीं हुए तो चलेंगे कैसे और संभलेंगे कैसे?अगर मंज़िल तक पहुंचना होगा तो चलना तो ज़रूरी है न......चाहे कोई साथ हो या ना हो,,,अकेले ही सही पर चलना है.....मंज़िल आपकी है,,,तय भी आपको ही करना है,लोग आएंगे और चले जायेंगे....बस आप अपनी सीट पकड़कर बैठिए और नज़ारा देखिये,, मज़े लीजिये सफर के....सही वक्त और सही हालात,सही मुसाफिर के साथ आपको आपकी मंज़िल तक ज़रूर पहुंचाएगा...
तभी अचानक ट्यून बदली और मैं लौट आई अपने ख्यालों के इस बवंडर से...मैंने एक लंबी गहरी सांस ली और मुस्कुरा कर ताकने लगी उसी सड़क पर..... शायद जिस सुकून की तलाश थी मुझे मुद्दतों से,वो मिल चुकी थी...! बारिश की कुछ बूंदे चेहरे पर गिरी.....और मैं उठकर निचे आ गयी अपने रूम में....ईयरफोन पर अब भी एक गाना बज रहा था "आते जाते खूबसूरत, आवारा सड़कों पे,कभी कभी इत्तेफाक से,,,,कितने अनजान लोग मिल जाते हैं ....उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं "......!!