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कर्म और कर्मफल की सूक्ष्मता ये भी

22 दिसम्बर 2017

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चुन-चुन के, छांट-छांट के

सब्ज़ी-फल खरीदने वाले बुद्दिमान भाई

कौये का सा गुण धर्म अपना कर

तुमने आज नौ-दस रुपयों का घाटा होने से

बचा तो लिया पर घाटा बचा कहाँ -

ये तो उस सर्वदा-कल्याणकारी की कृपा से

आज के दिन की तेरे ही पुराने किसी बीजे की,

तेरे ही भागों की तेरे ही जिम्मे की

छोटी सी घाटे की किश्त थी

जो तूने सांसारिक-बुद्दिमता के वश हो

भरी नहीं, टाल दी

जरा चेत! नौ-दस से पैंतालीस-पचास सालों में

ये कितनी पेंडिंग हो जाएंगी

तब किसी और रूप में इक्कठा बोरा मिलेगा

भुगतने को, वो भी लाखों का

यकीन मान बड़ा भारी पड़ेगा

और भरना ही भरना पड़ेगा

आज की तरह "भरने या ना भरने"

की स्वतन्त्रता भी ना मिलेगी

तुम क्या?, और भी करोड़ों लोग हैं

जिन्हें ये बात हजम नहीं होती थी

पर पिछले साल आठ नवंबर को.......

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