किस्मत आजमाने को,
हर दरवाजे को टटोलता,
निराश मनुष्य अपने कर्म,
को कोसता, रोता, पिटता,
चिल्लाता, व्यर्थ प्रलाप करता।
बजाये इन रंग बिरंगी दरवाजे के
कर्म पर अपने ध्यान दिया होता,
लगन अपने काम में लगाया होता,
तो निश्चय ही अपने मुकाम पर होता।
मन को भुलाने को और भरमाने को,
दस दरवाजे खोले जाते हैं,
कुछ तो मुर्ख होंगे जो किस्मत तलाशने,
दरवाजे पर सर पटकने आते हैं।