सबक ही सबक दिये इतिहास ने,
फिर भी क्या तुम संभल पाये,
घास की रोटी खायी राणा ने,
अकबर को महान तुम कह आये।
एक ही वार में जिस वीर ने,
घोड़े संग बहलोल् का सर जुदा किया,
उस वीर को तुमने यू ही,
स्वार्थ के खातिर भुला दिया।
अपनी आंखे खो कर भी जो,
पृथ्वी राज ने कर दिखाया,
उस वीर का मान भी तुमने,
मिट्टी में यू मिला दिया।
भरी सभा में सलावात को दंड दे
अमर सिंह ने मान बढ़ाया,
अर्जुन सिंह ने मिट्टी पलीद कर,
उसका भी अपमान किया।
इतिहास में जितने वीर हुए,
गद्दार उससे भी ज्यादा हुए,
आज भी सबक न ली हमने तो,
भविष्य में होंगे हम बिखरे हुए।