व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो गंगा एक नदी है, जो वाराणसी में भारत के कई अन्य शहरों को अन्न एवं जल की आपूर्ति कर उनके भरण पोषण में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करती है. इसी कारण उसे सम्मानीय दृष्टि से देखा जाता है.
यह तो रही व्यवहारिक दृष्टिकोण की बात पर इस लेख में हमें काशी में गंगा के महत्व और उससे जुड़ी कहानी के विषय में चर्चा करनी है. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हमें गंगा के एक नदी से मां गंगा होने के सफर यानी उसके पौराणिक महत्व की चर्चा करना आवश्यक हो जाता है.
बात करें गंगा के पौराणिक महत्व की तो पौराणिक रूप से गंगा कितनी पूजनीय एवं आदरणीय है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आप माँ गंगा के विषय में जानने की जिज्ञासा में जितने पौराणिक ग्रंथों को पढ़ेंगे उनमें आप एक नई कथा पाएंगे. इससे यह सिद्ध होता है कि मां गंगा हर युग में किसी न किसी रूप में उपस्थित रही हैं यह बात मैं इस आधार पर कह रही हूं क्योंकि हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म से जुड़ा हर पौराणिक ग्रंथ किसी ने किसी युग से संबंधित है.
जब हमें बात मां गंगा के काशी में पौराणिक महत्व की करनी है तो उसके लिए मुझे शिव पुराण से अधिक उपयुक्त स्त्रोत और कोई नहीं लगता क्योंकि काशी भगवान शिव द्वारा बसाई गई नगरी कही जाती है, तो माँ गंगा को भगवान शंकर की दूसरी पत्नी माना जाता है. इसलिए बात काशी और गंगा की हो और उसमें भगवान शिव का उल्लेख ना किया जाए तो वह चर्चा अधूरी सी लगती है.
आइए अब मां गंगा के विषय में शिवपुराण में वर्णित तथ्यों के आधार पर उनकी काशी में महत्ता को जान लेते हैं.
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने काशी नगरी माता पार्वती के विवाह के बाद उनके निवास स्थान के रूप में कैलाश पर्वत के विकल्प के रूप में बसाई थी.
क्योंकि माता पार्वती एक राजकुमारी थीं, और उन्हें भूत पिशाचों एवं जहरीले जीव जन्तुओं के बीच में रहने का अभ्यास नहीं था, तो यदि उन्हें कैलाश पर्वत पर रहने में असुविधा होती हैं, तो उन्हें लेकर काशी प्रस्थान कर जाएंगे काशी नगरी को बसाए जाने के मूल में यह योजना थी, इसलिए भगवान शिव यहां मानव जाति को बसाना चाहते थे ताकि माता पार्वती को यहां रहने में असहजता का अनुभव ना हो.
परंतु जब भगवान शिव ने ध्यान मग्न होकर इस नगरी की कल्पना की तब यह स्थान पूर्णरूपेण पथरीली चट्टानों से भरा था क्योंकि यहां जल का कोई स्रोत नहीं था तो भगवान शिव ने अपना त्रिकाल का प्रतीक कहा जाने वाला त्रिशूल मां गंगा का आवाहन करते हुए धरती पर मारा जिससे तीन जलधाराएं प्रकट हुई जिनमें से दो जल धाराओं को मां गंगा ने अपनी इच्छा अनुसार मोड़ दिया पर त्रिशूल का मध्य भाग लगने से प्रकट हुई धारा (जो कि उत्तरवाहिनी थी) को भगवान शिव ने अपनी शक्ति से रोक लिया और माँ गंगा से यहां रहकर यहां के निवासियों के भरण-पोषण के लिए अन्न जल की निरंतर आपूर्ति तथा यहां देह त्याग करने वाले प्रत्येक प्राणी को मोक्ष प्रदान करने का दायित्व वहन करने की विनती की, जिसे मां गंगा ने सहर्ष स्वीकार लिया.क्योंकि जिस तरह माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी उसी तरह मां गंगा भी भगवान शिव की वामांगिनी होना चाहती थी. इसलिए उनका यह आग्रह मानकर मां गंगा भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहती थी इस प्रकार मां गंगा का काशी आगमन हुआ.
अब बात आती है मां गंगा के काशी में महत्त्व की तो मां को काशी में जीवनधारा एवं मोक्षदायिनी जैसे नामों से अलंकृत किया जाता है इसका कारण यह है कि मां गंगा काशी और उसके आसपास के क्षेत्र के लोगों के लिए अन्न उत्पादन एवं जल आपूर्ति के साथ-साथ काशी और उसके आसपास के कुछ क्षेत्रों में देह त्याग करने वालों को मोक्ष का दान देती है.यह मोक्ष दान पाने के लिए जीवित व्यक्ति गंगा में स्नान करते हैं यह बात तो सभी जानते हैं पर काशी में देह त्याग करने वाले प्राणी मात्र के शव को जब तक गंगाजल का स्पर्श ना मिले तब तक उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता ऐसी मान्यता है इस प्रकार माँ गंगा काशी वासियों के लिए कितनी महत्वपूर्ण एवं आदरणीय हैं इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है.