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कविता

9 सितम्बर 2015

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जिन्दगी की हक़ीकत भी ख्वाबों से इतर होती है। 2 जो सुलझ न सके सरलता से, सवाल अक्सर वही देती है।। समझने चलो जो जिन्दगी को, तो सजा ही सजा लगती है।2 और जीते चलो हर लम्हे को, तो मजा ही मजा लगती है। यहाँ......कुछ बादल गरजते हैं, कुछ बादल बरसते हैं। 2 मदद के हकदार यहाँ, अक्सर ही तरसते हैं ।। न कोई समझा है, और कोई न समझेगा।2 स्वार्थ की शूली पर, सच सदा ही झूलेगा। परमार्थ की भावना गुम हो गई है कहाँ, स्वार्थ को साधना ही सर्वोपरी है यहाँ। सब समझते है, सब जानते है फिर भी नहीं मानते हैं, कजाने क्यों लोग अपनी तारीफों के पुल बांधते है।। छोटा सा जीवन है छोटी सी कहानी है धन की धुन पर नाचना है, ये सब ने ठानी है ।। प्रशंसा की भूख लिए मदद के हाथ बढ़ते है, सच्चाई है जानवरों की दुनिया में, इंसान तो सिर्फ अफवाह ही गढ़ते हैं। अँधेरे में गुम इन परछाईयों से नहीं डरता हूँ, सफ़र की इन कठनाईयों से लड़ता हूँ। मंजिल मिलेगी जरूर जानता हूँ, बस यही आश लिए रोज घर से निकलता हूँ, चलता हूँ चलता हूँ और चलता हूँ।।

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