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कोरोना पर विचार दृष्टि

12 अप्रैल 2020

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कल करे सो आज कर आज करे सो अब ,

पल में परलय होएगी , बहुरि करैगो कब।


कबीरदासजी द्वारा रचित उपर्युक्त पंक्तियों को हम सब बचपन से सुनते-पढ़ते तो आ रहे हैं, पर प्रत्यक्ष इनका अनुभव हम अवश्य आज की इस विषम परिस्थिति में कर पा रहे होंगे। ऐसे कई आवश्यक कार्य जो हमने समय पर सम्पन्न नहीं किये, अब इस लॉक डाउन के कारण उनकी सम्पन्नता में इक लम्बा विलंंब निश्चित है और हो सकता है जब तक स्थिति में सुधार आये, इन अपूर्ण कार्यों की उपयोगिता ही तब तक नष्ट हो जाए।


इस कोरोना वैश्विक महामारी ने निश्चित ही हम सभी को न केवल और सजग व सचेत बना दिया है अपितु जीवन की क्षणभंगुरता और निष्ठुरता का आभास बहुत ही समीपता से तथा व्यापक और विकराल रूप में कराया है जो कि अभूतपूर्व है। हमारी सम्पूर्ण पूँजी - संपत्ति आज के परिवेश में व्यर्थ और निरर्थक प्रतीत हो रही है।


और प्रकृति की विडम्बना तो देखिये, एक अति सूक्ष्म जीव ने एक अत्यंत बलशाली मानव को बिल्कुल असहाय और लाचार बना दिया है.


इन्ही उपर्युक्त विचारों से बुनी इक कविता आप सभी की सेवा में समर्पित है :


जिस ओर भी देखो मचा हुआ है पल-पल हाहाकार,

ना दीख रहा ना सूझ रहा कोई बचने का उपचार ,

बचने का उपचार, कोरोना सब पर भारी,

विकसित देशों में भी गिनती नित है जारी।


चीन से निकली फैल रही है दुनिया भर में,

अमरीका , जापान, इटली सब झुक गए पल में।

ऊँच -नीच और धर्म-जात का फ़र्क मिटाया ,

सबको इसने बड़े प्यार से गले लगाया।


दुबक-दुबक कर बैठ रहे हैं लोग घरों में,

नासा तक भी बंद होगया देखो पल में।

चाँद और मंगल पर थी रहने की तैयारी ,

लो खुद की जान बचा पाना ही पड़ गया भारी।


चारों ओर है पसरा इक गहरा सन्नाटा,

काम-काज हुआ ठप्प मचा घाटा ही घाटा।

इक अति-सूक्ष्म जीव ने विश्व में हडकंप मचाया ,

परमाणु हथियार भी रह गए पीछे भैया।


बहुत उड़ रहा था मनुष्य अपनी ही धुन में,

पल में बैठ गया देखो अब कोप-भवन में।

जैसे ही मनुष्य हुआ निष्क्रिय थोड़ा सा,

प्रकृति ने ली सांस, खिली और छठा कुहासा।


जीव-जंतु पशु-पक्षी सारे चहक रहे है ,

रंग बिरंगे फूल मनोहर महक रहे हैं।

प्रकृति का मनभावन रूप निखर रहा है,

मानव भी अन्तर्मुख होकर चमक रहा है।


पूरा विश्व बंधा हो जैसे इक डोरी से,

मानवता की कड़ी परीक्षा हो रही जैसे।

मत जाना बाहर बस घर के भीतर रहना,

योग लगा कर शक्ति का आह्वान भी करना।


संयम और धीरज की है अब अग्नि-परीक्षा,

विजयी-रत्न बनना निश्चित है हम सभी का।

कोरोना के इस अंधकार को मिटना ही है,

अपने भीतर दीप प्रज्ज्वलित करना ही है।


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