shabd-logo

कोरोना

25 जनवरी 2022

20 बार देखा गया 20

देख कलोहर मुखरित होता 

नर नारी और जीव 

रह रहे थे देवलोक में 

तो क्यों  कांप उठी है नींव

क्या विश्रीखायें हो रहीशर थी शृष्टि 

आपदा और अनहद की दृष्टि 

कुछ तो रहा  होगा 

सुर-बालाओ सा श्रृंगार

यौवन- सिम्त मधुप सदृश विहार 

तब ना प्राकृत मूच्छिर्त ताने होंगे 

पुलकित मन कराहे होंगे 

करुणा सी सिंधु लहरी 

क्रंदन की होगी 

तब ना कोरोना ..........

कंकण कावृत रणित नुपूर हुए 

 अब बोलो ...........

कपोल- सुरभित मधु - मदिरा कहाँ गया 

जो व्यस्त थी मदमस्त थी 

वो नुपूर तरंग लहरी कहाँ गया  

अब क्यों नहीं होता 

गीतों का स्वर-  लय अभिसार  

अब क्यों ज्वाला में 

जल रहा विश्व - विहार 

अब क्यों नहीं मचलती 

मणि रचित मालाये 

जिसमे जकर आयी थी 

विलासिनी सुर - बालाये 

अब कोरोना का .......

कृन्दन मय क्यों 

जब कह रही थी 

मुझे बचायो .......

हे मानव ............ .                                                                                               

 

                     

Yugant Tapsvee की अन्य किताबें

किताब पढ़िए