देख कलोहर मुखरित होता
नर नारी और जीव
रह रहे थे देवलोक में
तो क्यों कांप उठी है नींव
क्या विश्रीखायें हो रहीशर थी शृष्टि
आपदा और अनहद की दृष्टि
कुछ तो रहा होगा
सुर-बालाओ सा श्रृंगार
यौवन- सिम्त मधुप सदृश विहार
तब ना प्राकृत मूच्छिर्त ताने होंगे
पुलकित मन कराहे होंगे
करुणा सी सिंधु लहरी
क्रंदन की होगी
तब ना कोरोना ..........
कंकण कावृत रणित नुपूर हुए
अब बोलो ...........
कपोल- सुरभित मधु - मदिरा कहाँ गया
जो व्यस्त थी मदमस्त थी
वो नुपूर तरंग लहरी कहाँ गया
अब क्यों नहीं होता
गीतों का स्वर- लय अभिसार
अब क्यों ज्वाला में
जल रहा विश्व - विहार
अब क्यों नहीं मचलती
मणि रचित मालाये
जिसमे जकर आयी थी
विलासिनी सुर - बालाये
अब कोरोना का .......
कृन्दन मय क्यों
जब कह रही थी
मुझे बचायो .......
हे मानव ............ .