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देख कलोहर मुखरित होता नर नारी और जीव रह रहे थे देवलोक में तो क्यों कांप उठी है नींव क्या विश्रीखायें हो रहीशर थी शृष्टि आपदा और अनहद की दृष्टि कुछ तो रहा होगा सुर-बालाओ सा श्रृंगार यौव