जीवन में उतार- चढाव बने रहते हैं। लेकिन मनुष्य को कभी भी निराश नहीं होना चाहिए और न ही हाथ पर हाथ धरकर बैठना चाहिए क्योंकि यह उतार-चढ़ाव तो जिंदगी रूपी सिक्के के दो पहलू हैं ।कभी सुख आते हैं ,कभी दुख आते हैं ।
जयशंकर प्रसाद जी ने भी अपनी एक रचना में लिखा है :-"दुख की रचनी बीच विशेषता सुख का नवल प्रभात।"दुख के बाद सुख आने पर जो खुशी मिलती है ...वह हमें बहुत ही भावुक बना देती है। शब्दों से परे यह खुशी हमारी आंखों में आंसू ला देती है, हमें रुला ही देती है।
जयशंकर प्रसाद जी ने भी अपनी एक रचना में लिखा है :-"दुख की रचनी बीच विशेषता सुख का नवल प्रभात"दुख के बाद सुख आने पर जो खुशी मिलती है ...वह हमें बहुत ही भावुक बना देती है। शब्दों से परे यह खुशी हमारी आंखों में आंसू ला देती है, हमें रुला ही देती है।द सुख आने पर जो खुशी मिलती है ...वह हमें बहुत ही भावुक बना देती है। शब्दों से परे यह खुशी हमारी आंखों में आंसू ला देती है, हमें रुला ही देती है।
परंतु यह खुशी आने के और दुख सहने के बीच का जो रास्ता है वह गुजारना बहुत मुश्किल होता है।पर मनुष्य को अपने भगवान को याद करते रहना है और उस पर असीम विश्वास को भी बनाए रखना है। सभी मनुष्य उस भगवान के घर से आए हुए हैं। फिर यह सुंदर सृष्टि रचाने वाले भगवान किसी को दुख में कैसे रख सकता है। अपने भक्तों को दुखी देखकर भगवान भी कभी खुश नहीं होते। भगवान पर पूरी आस्था रखते हुए हमें दुख रूपी परीक्षा को पास करना है। दुख रूपी इस खाई को हमने एक लंबा जंप लगा लांघना है ।ये प्रयास हमारे द्वारा ही किया जाएगा कोई और हम से आकर नहीं करवाएगा हमेशा मन में यह सोचना चाहिए जिस प्रकार रात के बाद दिन आता है । सूर्य के एक दिन ढलने के बाद वह फिर उग आता है।ठीक इसी प्रकार दुख के बाद सुखों का आना निश्चित है । बस अपनी कोशिश और अपने भगवान पर विश्वास को डगमगाने नहीं देना है।