क्या सोचता रे पागल मनवा
जो वीत गया सो वीत गया ।
इस झुठे खेल में मूल हि क्या।।
कोई हार गया कोई जीत गया ।।
क्या सोचता रे .........................
हम चाहें वही हो जरुरी नहीं ।
आशाएें कभी हुई पुरी नहीं ।।
रे सोच तनिक जीवन घट का ।
स्वासा जल कितना वीत गया ।।
क्या सोचता रे ..............................,
प्रभु प्रेम पीयूष पिया जिसने ।
परहित हित जन्म लिया जिसने ।
जीवन है वही जो जन जन का ।।
मधु अधरों का वन गीत गया ।
क्या सोचता रे ..............................
सूर्य सा साथी जव मिलता है ।
निर्मल कमल तव खिलता है ।।
हर सांस को कहता है पंकज ।
हम कैसे खिलें अव मीत गया ।।
क्या सोचता रे ...................................