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क्या सोचता रे पागल मनवा ......................

15 जून 2018

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क्या सोचता रे पागल मनवा

जो वीत गया सो वीत गया ।

इस झुठे खेल में मूल हि क्या।।

कोई हार गया कोई जीत गया ।।

क्या सोचता रे .........................

हम चाहें वही हो जरुरी नहीं ।

आशाएें कभी हुई पुरी नहीं ।।

रे सोच तनिक जीवन घट का ।

स्वासा जल कितना वीत गया ।।

क्या सोचता रे ..............................,

प्रभु प्रेम पीयूष पिया जिसने ।

परहित हित जन्म लिया जिसने ।

जीवन है वही जो जन जन का ।।

मधु अधरों का वन गीत गया ।

क्या सोचता रे ..............................

सूर्य सा साथी जव मिलता है ।

निर्मल कमल तव खिलता है ।।

हर सांस को कहता है पंकज ।

हम कैसे खिलें अव मीत गया ।।

क्या सोचता रे ...................................


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