shabd-logo

टीकाकरण (लघुकथा)

23 दिसम्बर 2016

108 बार देखा गया 108
'नमस्ते डाकटरनी साहिबा हम बिमला अभी पिछले महीना आप हमारे बच्चा कराये थे न।' 'अच्छा हम्म' 'ये हमारा लड़का किसन आप बोले थे एक महीने बाद लेकर आये इसको टीके के लिए ' 'हाँ हाँ, ठीक हो अब ? ' 'हाँ जी ' 'दूध आता है ठीक से ' 'हाँ जी आता है ' 'बच्चे को यहाँ लेटाओ वजन करना है इसका ' 'सिस्टर इनकी फाइल लेकर आना ' 'देखो विमला सरकार की तरफ से कुछ टीके मुफ़्त में उपलब्ध होते है पर ये कुछ दूसरे टीके भी है जो लगवाने चाहिए बच्चे को, तो मेरी मानो तो इसको भी कार्ड में जुड़वा लो सहकारी दुकान से लोगी तो ज्यादा महंगे नहीं पड़ेंगे हज़ार दो हज़ार का ही खर्चा आएगा ' 'हाँ हाँ डाक्टरनी साहिबा आपको मुन्ना के लिए जो लगे आप कारड में जुड़वा लो मैं लगवाऊंगी सारे टीके इसको, बच्चों के लिए तो मेहनत मजदूरी करते है जितना भी खर्चा हो आप मुन्ना के लिए अच्छे से अच्छा लिख दो। एक ही तो है हमारा लाल ' 'मैं नहीं लिखूंगी अंदर के कमरे में बच्चों के डॉ बैठे है वो लिखेंगे अभी सिस्टर ले जाएगी तुमको डॉ साहब के पास ' (टेबल पर रखी विमला की फाइल पढ़कर चौंकते हुए ) 'अरे विमला तुम्हारे तो जुड़वा बच्चे हुए थे ना, एक बेटी भी हुई थी तुमको तो उसको क्यों नहीं लाई, दोनों बच्चों के साथ में कार्ड बनवाना था ' 'डाक्टरनी जी अभी तो मुन्ना का बनवा दो अगली बार उसका देखेंगे' 'दोनों साथ में हुए थे तो टीके भी एक ही समय पर लगेंगे कल मुन्नी को भी लेकर आना दोनों बच्चों का साथ में कार्ड बनवा लेंगे' 'अरे आपको कहा न मुन्ना का बनवा लो हमको नहीं बनवाना उस पनौती का कारड वारड एक तो पैदा हो गई है अब क्या जीवन भर उसपर पैसा लगाते रहेंगे, अपनी किस्मत में जो लिखवा कर आई होगी वो भुगतेगी आप मुन्ना का कारड बनवा लो नहीं हो दूसरे हस्पताल जाकर बनवा लेंगे ' (डॉ संध्या का जवाब उनके तमतमाते चेहरे पर साफ लिखा था, गुस्से और अविश्वास की दृष्टी से वो विमला को देखती रही जब तक की को फाइल उठाकर कमरे के बाहर न निकल गई)

'नमस्ते डाकटरनी साहिबा हम बिमला अभी पिछले महीना आप हमारे बच्चा कराये थे न।'

'अच्छा हम्म'

'ये हमारा लड़का किसन आप बोले थे एक महीने बाद लेकर आये इसको टीके के लिए '

'हाँ हाँ, ठीक हो अब ? '

'हाँ जी '

'दूध आता है ठीक से '

'हाँ जी आता है '

'बच्चे को यहाँ लेटाओ वजन करना है इसका '

'सिस्टर इनकी फाइल लेकर आना '

'देखो विमला सरकार की तरफ से कुछ टीके मुफ़्त में उपलब्ध होते है पर ये कुछ दूसरे टीके भी है जो लगवाने चाहिए बच्चे को, तो मेरी मानो तो इसको भी कार्ड में जुड़वा लो सहकारी दुकान से लोगी तो ज्यादा महंगे नहीं पड़ेंगे हज़ार दो हज़ार का ही खर्चा आएगा '

'हाँ हाँ डाक्टरनी साहिबा आपको मुन्ना के लिए जो लगे आप कारड में जुड़वा लो मैं लगवाऊंगी सारे टीके इसको, बच्चों के लिए तो मेहनत मजदूरी करते है जितना भी खर्चा हो आप मुन्ना के लिए अच्छे से अच्छा लिख दो। एक ही तो है हमारा लाल '

'मैं नहीं लिखूंगी अंदर के कमरे में बच्चों के डॉ बैठे है वो लिखेंगे अभी सिस्टर ले जाएगी तुमको डॉ साहब के पास '

(टेबल पर रखी विमला की फाइल पढ़कर चौंकते हुए ) 'अरे विमला तुम्हारे तो जुड़वा बच्चे हुए थे ना, एक बेटी भी हुई थी तुमको तो उसको क्यों नहीं लाई, दोनों बच्चों के साथ में कार्ड बनवाना था '

'डाक्टरनी जी अभी तो मुन्ना का बनवा दो अगली बार उसका देखेंगे'

'दोनों साथ में हुए थे तो टीके भी एक ही समय पर लगेंगे कल मुन्नी को भी लेकर आना दोनों बच्चों का साथ में कार्ड बनवा लेंगे'

'अरे आपको कहा न मुन्ना का बनवा लो हमको नहीं बनवाना उस पनौती का कारड वारड एक तो पैदा हो गई है अब क्या जीवन भर उसपर पैसा लगाते रहेंगे, अपनी किस्मत में जो लिखवा कर आई होगी वो भुगतेगी आप मुन्ना का कारड बनवा लो नहीं हो दूसरे हस्पताल जाकर बनवा लेंगे '

(डॉ संध्या का जवाब उनके तमतमाते चेहरे पर साफ लिखा था, गुस्से और अविश्वास की दृष्टी से वो विमला को देखती रही जब तक की को फाइल उठाकर कमरे के बाहर न निकल गई)

अफ़साने

किताब पढ़िए